सुर कभी भी बेसुरे नहीं होते
चाहत जिसे हो मन्द्र की
तार सप्तक के स्वर
शोर सा करते लगते हैं ....
जब आदत हो ऊँचे बोलों की
सरगोशियों में मध्यम सुर
अक्सर अनसुने रह जाते हैं ..
दोष कभी भी नहीं रहा
वीणा के ढीले पड़ते तारों का
पंखुड़ियों को तो बिखरना ही था
गुनाहगार बनी बलखाती पुरवाई ..
-निवेदिता
बहुत सुंदर निवेदिता बहन
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना!!
जवाब देंहटाएंहम सुर में सुने जा रहे है . सुरीला .
जवाब देंहटाएंसच है, सबकी अपनी अलग चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंपंखुड़ियों को तो बिखरना ही था
जवाब देंहटाएंगुनाहगार बनी बलखाती पुरवाई
बहुत खूब
पंखुड़ियों को तो बिखरना ही था
जवाब देंहटाएंगुनाहगार बनी बलखाती पुरवाई ..sahi
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/5.html
जवाब देंहटाएंदी , बहुत-बहुत धन्यवाद ....... सादर !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
जवाब देंहटाएंmy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
पंखुड़ियों को तो बिखरना ही था
जवाब देंहटाएंगुनाहगार बनी बलखाती पुरवाई ..
....सच कहा है...बहुत सुंदर...
वाह ...बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंwow thats great.
जवाब देंहटाएंसच है लय में हों तो तार सप्तक भी मज़ा देता है ...
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत सुंदर....
जवाब देंहटाएंक्या बात है. वास्तव में सुर कभी बेसुरे नहीं होते.
जवाब देंहटाएंक्या बात है. वास्तव में सुर कभी बेसुरे नहीं होते.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा हें
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना.........................
जवाब देंहटाएंसादर.
सुर बेसुरे नहीं होते! सही ही लिखा। :)
जवाब देंहटाएंकल 02/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sur to satrange hote hain...:)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएं:-)