गुरुवार, 31 मार्च 2011

गुमसुम खामोशी ........

इस गुमसुम खामोशी में 
ख्यालों की आंधियां लाते
अनसुलझे सवालों में 
धूपिल छाँव तलाशते
कैसे हैं ये जज्बात !
कभी पानी सा सरल 
कभी पानी सा कठोर,
धूमिल पगडंडी से 
धुंधलाते जाते रास्ते ,
कभी जुगनू सी चमक 
कभी बिजली की कडक,
कभी मील के पत्थर बन 
राहें सरल कर जाती ,
कभी गहराइयों में ढकेलती
खाइयों में दफ़न कर जाती ,
ये कैसी आवाज़ है दम घोंटती 
सुन कर भी अनसुनी ही करती .......
                        -निवेदिता    

22 टिप्‍पणियां:

  1. खामोशी को बहुत ही अच्छे शब्द दिए हैं आपने.

    सादर

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  2. गुमसुम खामोशी में
    ख्यालों की आंधियां लाते
    अनसुलझे सवालों में
    धूपिल छाँव तलाशते
    कैसे हैं ये जज्बात !
    khamoshi me umadte jazbaaton kee aandhi bahut kuch de jati hai

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  3. वाह! बहुत बेहतरीन रचना| धन्यवाद|

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  4. मौन करे नद-नाद,
    कहीं छलका है महा विषाद।

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  5. खामोशी के जज़्बात -
    पर करते सुंदर बात ....!!

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  6. धूमिल पगडंडी से
    धुंधलाते जाते रास्ते ,
    कभी जुगनू सी चमक
    कभी बिजली की कडक,
    कभी मील के पत्थर बन
    राहें सरल कर जाती ,

    बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. कभी गहराइयों में ढकेलती
    खाइयों में दफ़न कर जाती ,
    ये कैसी आवाज़ है दम घोंटती
    सुन कर भी अनसुनी ही करती

    बेहतरीन भाव......

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  8. कभी पानी सा सरल
    कभी पानी सा कठोर,

    बहुत खूब ...अच्छी रचना

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  9. जज़्बातो की भाषा कब समझ आती है………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  10. gahara bhav...sundar
    http://kavyana.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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  11. इस गुमसुम खामोशी में
    ख्यालों की आंधियां लाते
    अनसुलझे सवालों में
    धूपिल छाँव तलाशते
    कैसे हैं ये जज्बात !...

    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    शुभकामनायें !

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  12. very nice creation really it is !!!
    to research ur Raam..visit now ---
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  13. अनसुलझे सवालों में
    धूपिल छाँव तलाशते
    कैसे हैं ये जज्बात !

    सार्थक सुन्दर रचना....
    सादर.

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  14. वाह...आपकी ख़ामोशी ने बहुत कुछ कह डाला..
    बहुत खूब.

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