शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

आदत

 कोई भी आदत अच्छी है अथवा बुरी यह समझ, या कह लें कि वह ध्यान आकर्षित भी तभी कर पाती है, जब उस के परिणाम हमारे अथवा परिवार के जीवन पर पड़ने लगते हैं, परन्तु तब तक वह जीवन शैली बन जाती है, जिसको हम अनेकानेक प्रयासों के बाद भी बदल नहीं पाते हैं तब भी उसके दुष्परिणामों को समझते हुए , उसके चंगुल से छूटने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहते हैं। इस तरह की आदतों में सामान्यतः नशा अथवा दूसरों को पीड़ा पहुँचा कर मिलने वाले आनन्द की आदत है। वहीं कुछ ऐसी आदतें भी होती हैं जो स्वयं को ज्यादा परेशान करती हैं। परन्तु यह भी एक बहुत बड़ा सच है कि नशा जैसी घातक आदतें जल्दी नहीं जाती हैं परन्तु चली जाती हैं, जबकि स्वयं को नुकसान पहुँचाती आदतें बहुत मुश्किल से जाती हैं और अक्सर नहीं भी जाती हैं।


स्वयं को नुकसान पहुँचानेवाली आदतों की बात करें तब सबसे पहले जिस आदत की बात करूँगी, वह है दूसरे सभी को स्वयं से आगे रखने की आदत और इस आदत से स्त्री हो अथवा पुरूष, दोनों ही ग्रसित रहते हैं। अधिकतर स्त्रियाँ अपने दायरे में अपने स्वास्थ्य एवं आराम के प्रति लापरवाह रहती हैं। कोई भी वस्तु पहले सब के लिए परोस देती हैं, उसके बाद बच गया तब स्वयं लेती हैं, परन्तु यदि उसी समय दो अतिथि भी आ जाएं तब उनके लिए भी वह सामग्री सुलभ होती है अथवा बन जाती है, जबकि स्वयं के लिए कोई सब्स्टीच्यूट तलाश लेती हैं।स्वयं के लिए कुछ खरीदने में भी सबसे पीछे रहती हैं। ऐसा ही पुरूष भी करते हैं। ज़िन्दगी की तमाम तीखी धूप का ताप वो स्वयं पर ले लेते हैं और अपने परिजनों के हिस्से में शीतल एवं सुगंधित बयार जुटा लाते हैं। यह आदत दोनों को ही बदलनी चाहिए परन्तु जिम्मेदारी की आदत के तहत, इस को निभाये जाते हैं।


यदि मैं अपनी आदत की बात करूँ जिससे मैं परेशान भी बहुत हुई हूँ परन्तु बदल नहीं पाई हूँ, वह है इस कई मुखौटों वाली दुनिया में इकलौता चेहरा रखने की और स्वयं को मिलने वाले अवसरों पर दूसरों को भेजने की आदत। किसी भी विषय अथवा सम्बन्ध में, जो भी मेरा विचार रहता है, वह पूरी ईमानदारी और बेबाकी से रख देती हूँ। इसका दुष्परिणाम भी मैंने झेला है। मेरा सच जानकर दूसरे उसमें अपना गणितीय फॉर्मूला लगा कर बड़े ही आराम से दोषी साबित कर जाते रहे हैं। मेरे सच को झूठ मान कर यह भी कहा गया कि कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है जो सिर्फ़ सब का हित सोचे एवं करे ... कोई इतना मीठा तभी बोल सकता है जब वह सप्रयास अपने अन्दर अथाह कड़वाहट छुपाये हो। मैं भी थोड़ी क्या बहुत ही उल्टी सोच रखती हूँ ... इस तरह की प्रतिक्रियाओं को भी सकारात्मकता से लिया कि कोई हो अथवा न हो परन्तु मैं तो ऐसी ही हूँ। 


मेरे बच्चे भी कहते हैं,"किसी को गलत्त समझना आपके लिए असम्भव काम है ... आप उसमें भी उसकी कोई मजबूरी खोज लायेंगी।" कभी-कभी मैं भी सोचती हूँ और प्रयास भी किया कि एकाध चेहरा मैं भी लगा लूँ या थोड़ा सा कम सच बोलूँ, परन्तु बहुत बुरी तरह से असफ़ल हुई हूँ और अपनी सरलता नहीं छोड़ पाई हूँ। 


वैसे भी यदि मुझमें रत्ती भर भी परिवर्तन हो गया तब वह मैं नहीं रहूँगी कोई और ही शख्सियत बन जाऊँगी। शेष मेरे बारे में कोई क्या सोचता अथवा करता है, यह जानना और देखना भोलेनाथ एवं माँ शारदे का काम है।

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ

शनिवार, 10 दिसंबर 2022

समस्या और समाधान

 समस्या और समाधान


समस्या और उनका समाधान,अक्सर ही एक-दूसरे के साथ गलबहियाँ डाले हुए ही चलते हैं, परन्तु जब अचानक से ही कोई समस्या सामने आ जाती है, तब मस्तिष्क एक पल को शिथिल पड़ जाता है और उसी शिथिल हुए पल की कमजोरी का लाभ उठा कर समस्या अपना विकराल रूप दिखा कर,अपनी समस्त नकारात्मकता के साथ मन मस्तिष्क पर प्रभावी हो जाती है। इस बात की रोचकता यही है कि वह समस्या जीवन-मरण के प्रश्न जैसी नहीं होती अपितु बहुत छोटी सी भी हो सकती है,यथा हमको कहीं जाना हो और कैब या ऑटो न मिलने पर एक बदहवासी सी तारी हो जाती जबकि थोड़ा आगे चलने पर ही हमको कोई साधन मिल सकता है या उतनी दूरी तक पैदल ही चलने से हम गंतव्य के कुछ पास आ जाते हैं।

यह पूर्णतया सत्य है कि जीवन है तो समस्याएँ तो आगे-पीछे से उपस्थित हो कर साँसों का संतुलन बिगाड़ने के लिए सतत प्रयत्नशील रहती हैं क्योंकि यही उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। पानी के प्रवाह की प्रवृत्ति ढ़लान की तरफ़ ही गतिमान होना ही है, तब भी उस की प्रवृत्ति की विकरालता पर अंकुश लगा कर हम बाँध बना कर विभिन्न सकारात्मक कार्यों में उसकी ऊर्जा को समाहित कर देते हैं।

समस्याओं का समाधान तुरन्त करना है अथवा बाद में, यह तो उसकी प्रकृति एवं हमारी प्राथमिकता पर निर्भर करता है। बस याद रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि कभी भी समस्या को अनदेखा नहीं छोड़ना चाहिए, उनका समाधान / निराकरण अवश्य करना चाहिए।

मैं भी एक सामान्य व्यक्ति ही हूँ और जीवन में नित नई समस्याओं का सामना करती हूँ। समस्याओं के समाधान का मेरा तरीका बस इतना सा रहता है कि मैं पहले उस समस्या का सामना करती हूँ और उसके थोड़ा सम्हलने पर उसके कारण को समझ कर, उस समस्या की विकरालता की गति को अवरुद्ध करने का प्रयास करती हूँ। शेष चुनौतियों को छोड़ कर सिर्फ़ एक ही चुनौती / समस्या का ज़िक्र करना चाहूँगी जो रूप बदल-बदल कर सदैव साथ रही है। अपने काम के शुरू से ही अमित जी डिस्ट्रीब्यूशन में रहे हैं जो सीधे आम जन से जुड़ कर उनके सामने ही रखता है। आमजन को समस्या के कारण से मतलब नहीं रहता कि ट्रांसफॉर्मर खराब हो गया है कि तार टूट गया है, उनको तो निर्बाध रूप से विद्युत आपूर्ति चाहिए। ऑफिस में अधिकारियों के घेराव एवं नारेबाज़ी से मन नहीं भरता था तो परिवार को धमकाने जुलूस की शक्ल में आ जाते थे या फ़ोन करते रहते। शेष घटनाओं को एक बार भूलने का प्रयास भी करती हूँ, तब भी एक घटना नहीं भूलती ... एक पोस्टिंग पर वहाँ के नेतागिरी चमकाने के लिए किसी भी हद तक निरंकुश होने वाले सज्जन (?) के कई बार फ़ोन आ जाते थे या फिर जुलूस जैसी भीड़ के साथ स्वयं। उस समय  मेरा जवाब रहता कि सर से बात कीजिये। एक बार बच्चों की तबियत गड़बड़ थी और फिर फ़ोन आया, अपना रौब बनाये रखने के लिए यह सारी फ़ोन कॉल्स वो अपने समर्थकों के सामने स्पीकर पर करते थे। इस बार मेरा धैर्य भी जवाब दे गया और मैंने कहा,"प्रशासन में काम और आपके प्रश्नों प्रति उत्तरदायी सर हैं मैं नहीं। अब यदि आपको मुझसे ही जवाब चाहिए तो मेरी भी नौकरी सर की सेक्रेटरी के रूप में लगवा दीजिये ... और जहाँ तक बात है आपकी धमकियों की तो महोदय अमर हो कर कोई भी नहीं आया है। जब जिस पल भोलेनाथ चाहेंगे साँसे बन्द हो जाएंगी और जब तक वो नहीं चाहेंगे कोई किसी का बाल भी बाँका नहीं कर सकता है। स्पीकर पर ही आप बात करते हैं न तो सब ने मेरा भी जवाब सुन लिया होगा और अब आप यह ध्यान रखियेगा कि यदि मेरे परिवार को खरोंच भी आई तो सबसे पहले शक़ की सुई आपकी तरफ़ ही जाएगी। अपनी सुरक्षा के लिए हम सब की सुरक्षा की भी दुआ मांगियेगा।" मेरे इस जवाब के बाद वो एकदम शान्त हो गया और हमारे बाद जानेवाले अधिकारियों के भी घर कभी फ़ोन कर के अथवा जुलूस ले कर धमकाने नहीं पहुँचा।

किसी भी प्रकार की समस्या आने पर यदि पहले ही हम पैनिक हो जाएं और यही सोचते रहें कि वह समस्या आयी क्यों या कैसे आयी या फिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है ,तब तो उसको अपने दावानल में सम्पूर्ण स्वाहा करने का और भी अधिक अवसर मिल जाएगा।

समस्या बड़ी हो या छोटी,उसके अंकुरण के साथ ही उसका समाधान भी साँस लेने लगता है, आवश्यकता मात्र इतनी ही होती है कि उसको सकारात्मकता की धूप-पानी रूपी ऊर्जा पहुँचा कर समस्या रूपी आवरण को हटा कर समाधान को पल्लवित होने का अवसर दें।
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

घेरे प्रश्नों के : कैकेयी

 


सुन जरा ओ राजमहिषी
ऐसा जीवन कैसे जिया होगा!
सच बता ओ कैकेयी
पल-पल गरल पान किया होगा!

यहाँ-वहाँ की बातों में
तपती जलती रातों में
शर सन्धान किये होंगे
उर भिगोती बरसातों में
सच बता ओ कैकेयी
उधड़ी सीवन कैसे सिया होगा!

दशरथ ने ली अन्तिम शय्या
काल बन कर आया छलिया
पुत्र शोक में देख विह्वल
क्यों न भीगी तेरी अँखियाँ
सच बता ओ कैकेयी
वनवास कैसे दिया होगा!

राम सबल पुत्र थे मेरे
बहुत बड़ी आस हमारे
रामराज्य की आस लिए
वचन याद दिलाते तेरे
सच बताऊँ ऐ युग पुरूष
आगे-पीछे क्या-क्या न सोचा होगा!
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

लघुकथा : बिन्दी


नन्हा सा अवि खेलते_खेलते ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गया और शीशे के किनारे लगी हुई बिन्दियों से खेलने ही लगा था कि उसके पापा ने टोका,"बेटा! बिन्दियों से नहीं खेलते, गन्दी हो गयीं हैं। दिवी! हटाओ इनको।"

बेटे ने पलट कर देखा ," पापा ऐसा मत कहिये ,ये तो आप हैं, हटा दिया तो आप दादा जी हो जायेंगे और चले जायेंगे ..."

"अरे! ये सब किसने कहा ... जाओ खेलो",स्तब्ध होते हुए पापा ने कहा।

अवि सहम गया,"पापा! दादी माँ को बिन्दी लगाने के लिए जब कहा तो उन्होंने कहा कि उनकी बिन्दी दादा जी के साथ गयी।"

निवेदिता श्रीवास्तव निवी

लखनऊ

शनिवार, 3 दिसंबर 2022

महाभारत के चरित्र : विकर्ण



विभिन्न पौराणिक ग्रन्थों के कई चरित्र अपनी चरित्रगत विशिष्टता (अच्छी अथवा बुरी, दोनों ही) के लिए मानस में स्थान बना ही लेते हैं और वो जाने-अनजाने ही जीवन क्षेत्र में हमको प्रभावित भी करते हैं। यदि हम महाभारत को केन्द्र में रख कर मनन करें तो भीष्म सामर्थ्यवान होते हुए भी अपनी प्रतिज्ञा के चक्रव्यूह में उलझ कर अपने कुल के विनाश के सहभागी एवं विवश दृष्टा बने रह गए, तो धृतराष्ट्र अपने पुत्रमोह एवं राजसत्ता के दावानल में झुलसते रहे। जहाँ युधिष्ठिर तथाकथित धर्म का आवरण ओढ़े द्यूत में परिजनों को होम कर बैठे, वहीं दुर्योधन स्वयं को ठगा अनुभव कर के उद्दण्ड होता गया और सबको नकारता चला गया। विदुर और कृष्ण ने भी युद्ध रोकने का प्रयास किया, परन्तु असफ़ल ही रहे। 


उपरोक्त सभी चरित्र अपनेआप में अनेकानेक विशिष्टताओं का समावेश किये बैठे हैं, परन्तु महाभारत के जिस चरित्र ने मुझको सर्वाधिक प्रभावित किया वह विकर्ण है। धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से, उनका सबसे छोटा पुत्र था #विकर्ण । 


एक तरह से देखा जाए तो राज्य लालसा से छटपटाते धृतराष्ट्र, अहंकार से चूर दुर्योधन, विवश एवं गुप्त बदले की लालसा से ग्रसित शकुनि के साथ एवं सरंक्षण में होते हुए भी, विकर्ण ने सच का साथ नहीं छोड़ा था। महाभारत के युद्ध की जब पृष्ठभूमि रची जा रही थी, तब प्रत्येक घटना पर विकर्ण ने प्रतिरोध किया था। जब कृष्ण पाँच गाँव के सन्धि वार्ता के प्रस्ताव के साथ आये थे और कौरव इसके लिए तैयार नहीं हुए थे, तब भी विकर्ण ने कौरवों का विरोध किया था। द्यूत सभा के पीछे छुपी हुई, शकुनि की मंशा को समझ कर, उसका भी विरोध किया था। उस द्युत की चरम परिणति, समस्त राजकीय गौरव एवं पाण्डवों को भी हारने के बाद, जब द्रौपदी को दाँव पर लगाया जा रहा था, तब भी विकर्ण ने सबको रोकने का प्रयास किया। इन सब में विफल होने के बाद भी उसने न्याय एवं सच का साथ नहीं छोड़ा और द्रौपदी के वस्त्रहरण के समय भी, जब भीष्म इत्यादि तथाकथित महारथी भी मुँह फेर के विवशता प्रदर्शित कर रहे थे, तब भी विकर्ण ने प्रबल विरोध किया और दुर्योधन के द्वारा प्रताड़ित हो कर सभा से चला गया था। 


विरोध विदुर ने भी किया था, परन्तु उनके लिये कौरव एवं पाण्डव एक से थे, जिसमें से उन्होंने सच एवं धर्म के संगी पाण्डवों का साथ देना चुना, परन्तु विकर्ण ने न्याय के लिए अपने ही परिवार का विरोध किया। ऐसा विशिष्ट व्यक्तित्व, विकर्ण महाभारत का एक बहुत कम चर्चित, परन्तु मेरा प्रिय चरित्र है। 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

#लखनऊ

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

शिवोहम शिवोहम !!!

लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन

कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

सुमिरूँ तुझको ओ अविनासी
दरस को तेरे अँखियाँ पियासी
पिनाकपाणी जपूँ मैं स्त्रोतम
आओ उमापति मिटाओ उदासी
झुकाए मस्तक करूँ मैं अर्चन!
लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन
कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

कामनाओं के बादल घनेरे
मुझको माया हर पल घेरे
वासना के जाल हटाओ
याचना करूँ लगा के फ़ेरे
लगाई आस बनूँ मैं कुन्दन!
लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन
कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!

नन्दि सवारी सर्प हैं गहने
तेरी महिमा के क्या कहने
छवि अलौकिक नेह बरसे
त्रुटि बिसारो जो हुई अनजाने
कृपा करो हे सिंधुनन्दन!
लगा के चन्दन, करूँ मैं वन्दन
कैलाशवासी शिवोहम शिवोहम!
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ