मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

ज्ञान और बुद्धि

 

जन्म से मृत्यु तक रहते दोनों संग

दोनों की लयबद्ध ताल भरती उमंग

दोनो दो पहलू हैं एक ही विचार के 

ज्ञान और बुद्धि का संतुलन करता दंग!

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बुद्धि और ज्ञान ,दोनों चलते साथ - साथ

बुद्धि थाहे ज्ञान को ,पकड़े उसका हाथ

सही समय दें ज्ञान ,अनुभव कराती बुद्धि

अहंकार के भाव को ,वह चढ़ने न दे माथ !

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सन्त ज्ञानी कहते ,बुद्धि की महिमा अनन्त

रची जब रावण - संहिता ,तब मन से था सन्त

अहंकार ज्ञान पर छा गया ,करता गया दुष्कर्म

महाज्ञानी रावण का ,हो गया तब दारूण अन्त !

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निर्गुण और सगुण का करना क्या विवाद 

दोनों परस्पर एक हैं यही है अनुनाद

मन और आत्मा जैसे हैं ये दोनों ही एक

ज्ञान अकसर बुद्धि से करता यही संवाद ! 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी

#लखनऊ


बुधवार, 20 अप्रैल 2022

निगाहें न चुराया करो ...

 बातों से जानम न भुलाया करो

ख्वाबों में आ कर न सताया करो।

मिल जाओ कभी दिल के रस्ते पे
देख मुझे निगाहें न चुराया करो।

उलझनें जब सतायें ज़िन्दगी की सनम
रूख़ से परदा जरा तुम हटाया करो।

दरमियाँ हमारे हैं फ़ासले बहुत
तुम कदम इधर तो बढ़ाया करो।

पीर तेरी सताती है इस दिल को बहुत
कभी पीर सा मुझे भी मनाया करो।

दोष मेरे गिनाता है ज़माना बहुत
कभी हाल दिल के तुम भी सुनाया करो।

परस्तिश तुम्हारी की हमने बहुत
जानेजां #निवी को भी दिल मे बसाया करो।
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

लोरी : नयनन में सपन ...

निन्दरिया आ जा रे तू ,

नयनन में सपन सजा जा रे तू !


पलकन की डगरन पर तू

ममता की धड़कन में तू

जीवन की आशा मुस्काये

ममता की परिभाषा है तू

चन्दनिया महका जा रे तू !

नयनन में ...


आँचल की छाया मैं कर दूँ

बाँहों में तुझको मैं भर लूँ

सपनों सी मीठी हो दुनिया

फूलों से तेरी झोली मैं भर दूँ

कोयलिया लोरी सुना जा रे तू !

नयनन में ... 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 


बुधवार, 13 अप्रैल 2022

करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

 आ गयी जीवन की शाम

करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

रवि शशि की बरसातें हैं
अनसुनी बची कई बातें हैं
प्रसून प्रमुदित हो हँसता
भृमर गुंजन कर कहता
किस ने लगाए हैं इल्जाम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

कुछ हम कहते औ सुनते
बीते पल की थीं सौगाते
प्रणय की नही अब ये रजनी
छुड़ा हाथ चल पड़ी है सजनी
समय के सब ही हैं ग़ुलाम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!

जाती हूँ अब छोड़ धरा को
माटी की दी बाती जरा वो
जर्जर हो गयी है अब काया
मन किस का किस ने भरमाया
तन के पिंजरे का क्या काम
करती हूँ अन्तिम प्रणाम!
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

रविवार, 10 अप्रैल 2022

अलबेला सपना !

सजा रही अलबेला सपना

मन आशा से दमक रहा

*
राह बहुत हमने थी देखी
आन विराजो रघुनन्दन
फूल चमेली बेला भाये
लाये अगरु धूप चन्दन
मंगल बेला अब है आई
खुश हो घर गमक रहा है !
*
रात अमावस की काली थी
निशि शशि ने आस सजाई
राह प्रकाशित करनी चाही
चूनर तारों भर लाई
सुमन मेघ बरसाने आये
बन साक्षी अब फलक रहा !
*
कन्धे पर हैं धनुष सजाये
ओढ़ रखा है पीताम्बर
सुन्दर छवि है जग भरमाये
नाच रहे धरती अम्बर
आज महोत्सव अवध मनाये
दीवाली सा चमक रहा !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'