रविवार, 26 अगस्त 2018

एक वसीयत मेरी भी ....... निवेदिता



एक सपना मेरा भी  ......
समुंदर के किनारे पर
खूब सारी सीपियाँ बटोरूँ
समंदर की लहरों की फुहार 
चेहरे पर ओस की बूंदों सा छुएं
पहाड़ की चोटियों को 
बादलों से ढंके देखूँ
बादलों की साँस भरूँ
फूलों के अथाह रंग हों
खुशबू से मदहोश हो जाऊँ
किताबों से घिरे इस घने से
जंगल में बस गुम हो जाऊँ
एक वसीयत मेरी भी ....... निवेदिता


चित्र साभार गूगल से