शनिवार, 31 अगस्त 2013

क्यों आते हो .......




एक दिन 
दिल ने लचक कर 
आँसुओं  से कहा 
क्यों आते हो …… 
आँखें भी 
थक गईं हैं 
तुम्हे ……… 
हाँ तुम्हे 
स्थान देते - देते 
सब तस्वीरें 
धुंधला गईं 
यादों की टीस 
सहते -सहते !
 
ये शिकवे 
सुन - सुन कर 
आँसुओं ने भी 
थक कर 
घर नया 
तलाश लिया  
आँखों में तो
रेत सी रूखी 
खुश्की 
आ ही गयी  
मगर दिल  ……
क्यों इतना  
नम औ भारी सा 
हो गया  ……
                   -- निवेदिता 


रविवार, 25 अगस्त 2013

जन्मदिन तुम्हारा मुबारक हो हमको ………



बच्चों के जन्मदिन पर मैं हमेशा ही यादों की मनमोहक वीथियों में भटक जाती हूँ ,और पता नहीं कितनी बातें - यादें तरोताज़ा हो जाती हैं । आज भी तस्वीरों की तलाश में ये तस्वीर मिल गयी और इससे जुड़ी हुई उनकी शरारत भी दुलरा गयी। उपहार अकसर गिफ्ट - बॉक्स में ही दिया जाता है ,अपने दोनों बच्चों की ये तस्वीर मुझे यही याद दिलाती है और साथ ही ये याद आता है कि कैसे इन दोनों ने सामान आते ही फटाफट सब निकाल के इधर उधर फेंक दिया था और उस डिब्बे में दोनों घुस के बैठ गये थे और पावडर के नये डिब्बे से पावडर की बरसात भी की थी :)


आज हमारे बड़े बेटे "अनिमेष "का जन्मदिवस है :)


ईश्वर के वरदान की तरह ही मिला है अनिमेष हमें । एकदम मस्तराम - मनमौजी , अपनी ही धुन में मग्न , पर संवेदनशील भी बहुत ही ज्यादा है । सबकी मदद के लिए भी हमेशा तैयार । मुझसे तो वैसे भी इन दोनों की टेलीपैथी बहुत जबरदस्त है । जब भी कभी मैं थोड़ा सा भी विचलित होती हूँ या पीड़ा में होती हूँ उसी पल इन में से किसी का फोन आ जाता है और मैं जैसे एनर्जी ड्रिंक लेकर फिर से तरोताजा हो जाती हूँ । आज ही जब मुझे M.R.I. के लिए जाना था ,तो एक अजीब सी उलझन थी …….… मन कर रहा था कि वहां से भाग आऊँ पर अचानक ही दोनों बच्चों के चेहरे नजरों के सामने तैर गये और शक्लें आँखों में बसाए पूरी प्रक्रिया से कब गुजर गयी पता ही नहीं चला और जैसे ही बाहर आयी अनिमेष की फोन कॉल भी अचानक ही आ गयी  ………

अनिमेष की मासूम सी शरारतों की वजह से ही उसका नम्बर मेरे फोन में " नॉटी " के नाम से सुरक्षित है , कब वो दुलार में "नाटू " से होते हुए "नट्टू " तक पहुँचेगा ,ये तो उसकी उस समय की उसकी कान्हा - लीला पर निर्भर करता है  :)

पहले घर ,फिर I.I.T. कानपुर और अब X.L.R.I. जमशेदपुर में अनिमेष को देखती हूँ तो बस एक गीत याद आता है …… 




इस कान्हा से कम नटखट नहीं है मेरा कान्हा :) जितनी भी दुआएँ हो सकती हैं आज के दिन ही क्यों अपनी हर श्वांस में मेरे "नट्टू" को …… 
                          -निवेदिता 


शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

शब्दों की तलाश ………



                                                शब्द यूँ ही भटकते - अटकते रहे
                                                कभी ख़्वाबों तो कभी ख़यालों में
                                                इक नामालूम सी श्वांस सरीखी
                                                मासूम सी पनाह की तलाश में
                                                बेपनाह आवारगी का दामन थाम
                                                अजीब सी चाहत पहचानी राह में
                                                खामोशी से उभर अपना ख़्वाब बनी
                                                मेरी चाहत के शब्दों को , काश
                                                मिल जायें बस स्वर तुम्हारे ........
                                                                                  -- निवेदिता 

शनिवार, 10 अगस्त 2013

"ॐ नम: शिवाय"


एक अजीब सी विचलित और व्यथित मन:स्थिति में , अभी कुछ दिनों पूर्व हमलोग गुजरात यात्रा पर गये थे । अवसर या कह लें कि बहाना एक विवाह का था । बिटिया "मुग्धा" की डोली जाने के साथ ही मन और भी अधिक विचलित होने लगा था । उस समय ही एक दूसरे बच्चे "प्रतीक" ने हम लोगों के लिए अहमदाबाद से सोमनाथ होती हुए वडोदरा तक का एक लुभावना यात्रा वृत्त बना दिया और एक तवेरा भी मुहैय्या कर दी । पर मन बावरा पूरे रास्ते अशांत ही रहा । रास्ते भर ड्राइवर हम लोगों को सोमनाथ धाम की महिमा बतलाता रहा और मैं उद्विग्न सी अनसुना ही करती रही ,पर जैसे ही हम सोमनाथ पँहुचे मन एकसार होने लगा । 


सोमनाथ मन्दिर परिसर में पहुँचते ही मन जैसे एक स्थिरता पाने लगा । मन्दिर का सम्पूर्ण परिसर इतना व्यवस्थित और शांत था कि अनजाने ही मन " ॐ नम:शिवाय " की जपमाला बन गया ! दो - दो पंक्तियाँ स्त्रियों और पुरुषों के पृथक दर्शन के लिए थीं , जिसमें साथ लाये हुए पुष्प - पत्र को अर्पित करने और मत्था टेकने के लिए पर्याप्त समय देने के बाद अगले ही पल आगे बढ़ा दिया जाता था । इन पंक्तियों के बगल में ही दोनों तरफ पर्याप्त स्थान  था जिसमें  खड़े हो कर अथवा बैठ कर  ,मनचाहा समय बिताने का । हमलोग सुबह लगभग ६ बजे प्रात:आरती के लिए पहुँच गये थे और दो घंटे तक पूरा स्नान , श्रुंगार , आरती दर्शन का आनन्द लिया । डमरू की आवाज से आरती का प्रारम्भ होते ही बड़ा रोमांचक अनुभव हो रहा था और व्यथित मन जैसे स्वयमेव ही असीम स्थिरता और शान्ति के प्रभाव चक्र में समा गया  ………………. 


ये सोच कर फिर से जी जाऊँ , 
                       मन मेरा तेरा शिवालय है 
मेरी हर आती जाती साँस , 
                        बस तेरे नाम की माला है 
मेरी नस नस में बहती , 
                       तेरी गंगा की पावन धारा है 
व्यथित मन को मिली , 
                      तेरे चाँद सी शुभ्र शीतलता है 
मेरे मन की पीड़ा को ,
                       तेरे भस्म फुहार ने उड़ाया है 
तेरे डमरू के धमकने से , 
                      बढ़  चलती  मेरी  पगधारा है 
मेरे मन की बाती में , 
                      "ॐ नम: शिवाय" की ज्वाला है !
                                                          -निवेदिता