रविवार, 30 अगस्त 2020

काश .....

 काश ...

ज़िंदगी किताब होती 

थोड़ी सी ही नहीं 

बस बेहिसाब होती 

बिखर जाते पन्नों को 

चुभन के साथ

बाँधे रखती पिन 

चुभन में भी अपनी

मिठास रखती 

पन्नों का बिखराव 

समेट छुपा रखती

काश ! ज़िंदगी सुलझी गणितीय हिसाब होती !!!


काश ...

ज़िंदगी फूलों की 

बरसती बरसात होती

सूख जाती पंखुड़ियाँ 

खुशबू की फुहार होती

सजाते चटख रंग 

तितली के शोख पंख

हथेलियों की रेखाओं में 

कर जाते बसेरा 

और बस ही जाते 

उन ख्वाबो से कच्चे रंग

काश ! ज़िंदगी बेमुरौव्वत लहरों की न धार होती !!!

                              ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

लघुकथा : वो कुर्सी


अकसर शाम होते ही दो कुर्सियाँ ले जाकर बालकनी में रख देती थी और नजरें घड़ी की सुइयों के साथ हिचकती ,कसकती आगे बढ़ती जाती थीं । हाँ ! उस समय  सिर्फ दो ही काम होते थे कभी रूखी लगती सूनी सी सड़क को देखती तो कभी घड़ी को ...बहुत देर यही होता रहता था । फिर ढलती शाम और रात के गहराते साये हक़ीकत से रु - ब - रु करवा देते थे और कोरी कुर्सियाँ अंदर आ जाती थीं । 


अनायास ही कुछ खिलखिलाती आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं । पड़ोस में एक नया परिवार आ गया था । उनके बच्चे खेलते हुए इस तरफ आ गयी गेंद को वापस देने की पुकार लगाते हुए खिलखिला देते थे और मैं मन्त्रमुग्ध सी उनकी हँसती सूरत में लड्डूगोपाल को महसूस करने लगी थी । 


अब भी बाहर दो कुर्सियाँ ले जाती हूँ ... एक पर बैठी ,बच्चों की गेंद के इस पार आने की प्रतीक्षा करती हूँ और हाथ में थामी हुई किताब को पढ़ने का प्रयास किये बिना ही दूसरी खाली कुर्सी पर छोड़ देती हूँ । 


पास ही रखे 'कारवाँ'  से गाना गूँज उठता है "ज़िंदगी कैसी है पहेली .... "


सच ये मन भी न कहाँ - कहाँ भटकता रहता है !

                                  ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

लघुकथा : #पहला_प्यार

 लघुकथा : #पहला_प्यार


लाडो ! चल खाना खा ले ।

उहूँ 

चल न बेटा ,इतना भी क्या गुस्सा । सब तेरा भला ही तो सोच कर कह रहे हैं । 

इसमें क्या भला सोच रहे हैं ?

अरे लाडो पहले पढ़ाई कर ले ,फिर जो तू कहेगी सब मानेंगे । परन्तु अभी नहीं ।

माँ ! तुम नहीं समझ रही हो । पहला प्यार है मेरा ... 

हाँ लाडो तुम्हारी बात समझ रही हूँ ।

नहीं समझ रही हो । पहला प्यार भूलना आसान नहीं होता ( सिसकता प्रतिरोध )

गलत्त बोल रही है तू । कोई भी हो वह पहला प्यार खुद से करता है ।

खुद से ... मतलब ? 

हॉं ! 

कैसे ? 

तू मुझे क्यों प्यार करती है  ?

अरे यह क्या बात हुई ... माँ को प्यार करने का कोई कारण होता है क्या ! 

हाँ होता है । तू मुझसे नहीं उसको प्यार करती है जो तेरी माँ है । मेरी जगह कोई और होती तो तू उसको भी प्यार करती । मुझको प्यार करने के लिये मेरा नहीं तेरा होना जरूरी है ।

क्यों उलझा रही हो माँ ! 

नहीं आज तुझे समझना होगा । तू है इसलिये पढ़ रही है ,नृत्य सीख रही है ,गा रही है और उस व्यक्ति के लिये तड़प रही है ,जो अभी तेरे दिल - दिमाग तक ही आ पाया है । अभी वो तेरे जीवन में कहीं नहीं है ।

माँ !

लाडो ! इसीलिये कह रही हूँ कि पहले खुद को प्यार कर और इतनी योग्य बन जा कि सब तेरी बात को सुने ,समझें और मानें भी । 

हम्म्म्म

अभी तेरी उम्र बहुत कम है और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की योग्यता भी नहीं है । 

परन्तु माँ ...

दो बातें अच्छे से समझ ले कि यदि वह तुझसे सच्चा प्यार करता और गरिमा को समझता है तो तेरी बात को भी समझेगा और तेरी प्रतीक्षा भी करेगा । दूसरी बात कि तुम दोनों इतने क़ाबिल हो जाओ कि एक दूसरे की गरिमा को बिना कुछ भी कहे ही बनाये रख सको ।

माँ ! तुम न होती तो मेरा क्या होता ... 

हा ! हा ! हा ! मैं ऐसा इसीलिये बोल रही हूँ क्योंकि मैं खुद को बहुत प्यार करती हूँ । मेरी बेटी परेशान होती तो मैं भी तो चैन से नहीं रह पाती । 

                 .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

रविवार, 23 अगस्त 2020

गीत : सजा गया विरहन का सावन ...

 महक रहा है हलका - हलका ,

बालों में गूँथा जो गजरा ।  

देख रहा है छलका - छलका ,

नयनन में हँसता वो कजरा ।।


बोल रही है बहकी - बहकी ,

हिना हथेली में  मुस्काई ।

बिखर गई थी ढ़लके - ढ़लके ,

चुनरी माथे पर वो छाई ।।  


चूड़ी कंगन करते पागल ,

छनक - छनक कर गाते जाये । 

पाँवों में पहनी जो पायल ,

भरमाती उर को वो जाये ।। 


सजनी मचले बहकी - बहकी ,

घर आये परदेसी साजन । 

बिंदिया खिली चमकी - चमकी ,

सजा गया विरहन का सावन ।।   

 .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शनिवार, 22 अगस्त 2020

संवाद : बूँद और मोती

बूँद और मोती


बहुत दिनों बाद उसको देख कर वह किलक पड़ी : अरे !तुम ... कितने दिनों बाद मुलाकात हुई है और ये क्या ... तुम मुझसे इतने अलग कैसे लगने लगे 


 मोती : मतलब ?


बूँद : आसमान से तो हम दोनों ने साथ ही यात्रा शुरू की थी ।


मोती : हाँ ! की तो थी ...


बूँद : फिर तुम में इतनी चमक भर गई और मैं ... 


मोती : ना बहन दिल छोटा नहीं करते 


बूँद : नहीं ... नहीं ... तुम मुझसे सच - सच बताओ न ये कैसे हुआ ?


मोती : बताऊँ !


बूँद : और क्या ... कबसे पूछ रही हूँ और तुम बता ही नहीं रहे हो । अच्छा समझ गयी सब तुमको ही तो अपने पास रखना चाह रहे हैं और सराह भी रहे हैं । और मैं ... मुझे तो गलती से भी उनके ऊपर पड़ जाने पर झटक देते हैं । 


मोती : फिर वही बेकार की बातें कर रही हो ।


बूँद : समझ गयी ,तुम चाहते ही नहीं हो कि मैं खुद को सुधारूँ ...


मोती : तुम भी ... जानती हो हममें यह अन्तर परिवेश की वजह से आया है । मैं सीप में चला गया तो मोती बन गया और तुम दरिया में मिल कर जीवनदायिनी बन गयी । 


बूँद : जीवनदायिनी


मोती : और क्या ... कभी तुम प्यास बुझा जाती हो तो कभी फसल को सींच देती हो ... 


बूँद : हाँ ! यह तो है 


मोती : आज तुमको मेरी चमक आकर्षित कर रही है पर जानती हो मुझको तो कुछ पलों के लिये पहनने को निकालते हैं ,नहीं तो बाकी समय तो तिजोरी में ही मेरा दम घुटता रहता है । 


बूँद : तुम्हारा दम घुटता है ?


मोती : हाँ ! और तुम देखो कितनी मुक्त हो हवा के झूले पर सवार हो कर धरती आकाश सब घूमती हो ।


बूँद : शायद हम में भी इन्सानी प्रवृत्ति आ गयी है । दूसरों का जीवन ही अधिक अच्छा और आकर्षक लगता है ।

                                   .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

नवगीत : गान नहीं था साधारण ....

परम्परायें रहीं देखतीं

गान नहीं था साधारण !


शिशु अबोध किलक नहीं पाता

अपने सब छूटे जाये

नाव समय भी खूब सजाता

अंधेरा घिरता जाये  

रश्मि किरण भी सच को ढँकती

नियति करे तब निर्धारण !


पूछ रहे सभी कुल का नाम 

मौन सभी सामर्थ्य रही 

गुणी देखते नहीं क्यों काम 

वेदना अविरल हो बही

धधक रही थी उर में ज्वाला

पीर तभी बनती चारण !


बतलाता परिचय जो अपना 

ज्ञान कभी मिलता कैसे

झूठ छुपाये सौ परतों में 

पहुँच गया छल कर जैसे

चक्र फाँस सब मंत्र भूलता

चढ़ा शाप था गुरु कारण !

   .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

सोमवार, 17 अगस्त 2020

हाइकु ....

 हाइकु


मिट्टी का तन 

चक्रव्यूह सा चाक

फौलादी मन


डूबती शाम

उलझन में मन 

उर की घाम


टूटते वादे

बिखरती सी यादें

मूक इरादे


रूखी अलकें

नमकीन पलकें

कहाँ हो तुम 


खुले नयन

बुझा जीवन दीप 

मन अयन


चकित आँखें 

भरमाया सा मन 

बेबस तन


बिछड़ा साथी

राहें हैं अंधियारी 

बात हमारी

      .... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

शनिवार, 15 अगस्त 2020

वीर बाँकुरे

 वीर बाँकुरे ...


देश के रक्षक वीर बाँकुरे ,

आन देश की रखते प्यारे ।

अपनी माटी शीश सजा के,

ऊंची राष्ट्र ध्वजा फहरा के ।।


जय हिन्द का घोष हैं करते ,

निज प्राण का मोह ना करते ।

गगन धरा या सागर  गहरा ,

हर जगह लगाते हैं पहरा ।।


देश हित पर करे जो शंका ,

बज रहा हो युद्ध का डंका ।

चल देती वीरों की टोली ,

जय हिन्द की लगा कर बोली ।।


अरिदल को फिर गरल पिला कर ,

धूसर में भी पुष्प खिला कर ।

झूम रही टोली बलशाली ,

इनसे हम हैं गौरवशाली ।।

    .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'


मंगलवार, 11 अगस्त 2020

गीत : शर शय्या पर समय विराजे

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राधे - राधे 

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शर शय्या पर समय विराजे 

टेर रहा हो कहाँ कन्हाई !


बात धर्म की तुम हो करते 

परे सदा अन्याय हटाया 

नहीं शीश को देखा मोहन  

नेह चरण पर था बरसाया  

माया का यूँ चक्र चलाया  

अलख सत्य की सदा जगाई  


मान एक धागे का जाना 

वस्त्रों के तब ढ़ेर लगाये 

नहीं किसी को कुछ सूझा था 

बोल नहीं सच्चाई पाये 

आ पहुँचे तुम भरी सभा में 

द्रुपद सुता की आन बचाई  !


सुनो जरा मेरे मनमोहन

बतला दो गलती तुम सारी 

मैंने कब क्या पाप किया था     

बाणों की शय्या क्यों मेरी  

गंगा तट पर हूँ मैं लेटा  

जैसे हो मेरी अँगनाई !


सुनो पितामह तुम इस सच को

वही काटते जो हैं बोते  

चक्र चले अनगिन कर्मों का 

परिणाम सुखद कब हैं होते 

हर पद इक गरिमा है रखता  

नही राह सच की क्यो भायी !


  .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

कब मिलोगे ...

कब मिलोगे ...

पूरे चाँद की चमकती रात अंधेरी लगती है ,
अकसर ख़ामोश सी पूछती है कब मिलोगे !

बिखरी अलकों से पूछती अधखुली पलकें 
तुम्ही बताओ ऐ स्वप्न सच बन कब मिलोगे !

मुझसे दूर जाती नामालूम से लम्हों की कतारें ,
ठिठकती अटकती सी पूछती है कब मिलोगे !

दूर जाते क़दमों की सुनती हूँ जब कोई आहट ,
धड़कना छोड़ कराहती पूछती है कब मिलोगे !

मोती बनने की चाहत में स्वाति नक्षत्र खोजती ,
सीप में समाती हर बून्द पूछती है कब मिलोगे !

कहते हो तुम भोले का महानिवास (श्मशान) मुझे भाता , 
पता है कहीं मिलो न मिलो वहाँ जरूर मिलोगे ! 

यादों की मंजूषा छुपाये कितना शांत है साग़र
सिसकती लहरों से 'निवी' पूछती हैं कब मिलोगे !
                              ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

नवगीत : यादों की महकी अमराई


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विहस रही बदली वो पगली
यादों की महकी अमराई 
*
बैठ रहा पाटे पर वीरा 
मंगल तिलक लगाये बहना 
सुन आँखों से वो बोल रहा
तू ही है इस घर का गहना 
जब जब तू घर आ जाती है
आती खुशियाँ माँ मुस्काई 
*
मन तरसे अरु आँखें बरसे 
विधना ने क्यों रोकी राहें
नाम लिया है कुछ रस्मों का
रोक रखी वो फैली बाँहें
टीका छोटी से करवाना 
याद मुझे कर हँसना भाई
*
बीती बात याद जो आये
भर भर जाये मेरी अँखियाँ 
इस बरस तू नहीं आयेगी
बता गयी हैं तेरी सखियाँ
एक बार तू आ जा बहना 
कर लेंगे हम लाड़ लड़ाई 
*
रीत निभाना याद दिलाते 
कदम ठिठक बढ़ने से जाये
संस्कारों ने रोक रखा है
चाह रही पर आ नै पाये
पढ़ चिट्ठी अपनी बहना की 
भाई की आँखें भर आई
      ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'


शनिवार, 1 अगस्त 2020

नवगीत : बिलख बिलख वसुधा है रोती ...


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बिलख - बिलख वसुधा है रोती
समझ नहीं कोई पाया

हर्ष - विषाद उर में बस जाये  
प्रेम विशाल दिखा जाता ,
तब अंतर्मन संवाद करे 
नयन जलद सा खिल भाता ,
वीणा यादों की गान करे 
गीत पुरातन तब गाया ,
बिलख - बिलख वसुधा है रोती
समझ नहीं कोई पाया !
*
उम्मीदों की गगरी छलकी
समय विभीषण आ जाये ,
पर्वत - पर्वत घूम रहा था
छुपा अमिय रहा बताये ,
भूकम्पी सी आहट दे कर 
झटका घर को गिरा गया ,
बिलख - बिलख वसुधा रोती
समझ नहीं कोई पाया !
*
नयनों से जब जब नीर बहे
आसमान क्रंदन भरता ,
आस जगा साहस यूँ भर कर 
दायित्व वहन है करता ,
कर्तव्यों की बलिवेदी पर
हर पल की वह मौत जिया ,
बिलख - बिलख वसुधा है रोती
समझ नहीं कोई पाया !
 ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'