गुरुवार, 27 अगस्त 2020

लघुकथा : #पहला_प्यार

 लघुकथा : #पहला_प्यार


लाडो ! चल खाना खा ले ।

उहूँ 

चल न बेटा ,इतना भी क्या गुस्सा । सब तेरा भला ही तो सोच कर कह रहे हैं । 

इसमें क्या भला सोच रहे हैं ?

अरे लाडो पहले पढ़ाई कर ले ,फिर जो तू कहेगी सब मानेंगे । परन्तु अभी नहीं ।

माँ ! तुम नहीं समझ रही हो । पहला प्यार है मेरा ... 

हाँ लाडो तुम्हारी बात समझ रही हूँ ।

नहीं समझ रही हो । पहला प्यार भूलना आसान नहीं होता ( सिसकता प्रतिरोध )

गलत्त बोल रही है तू । कोई भी हो वह पहला प्यार खुद से करता है ।

खुद से ... मतलब ? 

हॉं ! 

कैसे ? 

तू मुझे क्यों प्यार करती है  ?

अरे यह क्या बात हुई ... माँ को प्यार करने का कोई कारण होता है क्या ! 

हाँ होता है । तू मुझसे नहीं उसको प्यार करती है जो तेरी माँ है । मेरी जगह कोई और होती तो तू उसको भी प्यार करती । मुझको प्यार करने के लिये मेरा नहीं तेरा होना जरूरी है ।

क्यों उलझा रही हो माँ ! 

नहीं आज तुझे समझना होगा । तू है इसलिये पढ़ रही है ,नृत्य सीख रही है ,गा रही है और उस व्यक्ति के लिये तड़प रही है ,जो अभी तेरे दिल - दिमाग तक ही आ पाया है । अभी वो तेरे जीवन में कहीं नहीं है ।

माँ !

लाडो ! इसीलिये कह रही हूँ कि पहले खुद को प्यार कर और इतनी योग्य बन जा कि सब तेरी बात को सुने ,समझें और मानें भी । 

हम्म्म्म

अभी तेरी उम्र बहुत कम है और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की योग्यता भी नहीं है । 

परन्तु माँ ...

दो बातें अच्छे से समझ ले कि यदि वह तुझसे सच्चा प्यार करता और गरिमा को समझता है तो तेरी बात को भी समझेगा और तेरी प्रतीक्षा भी करेगा । दूसरी बात कि तुम दोनों इतने क़ाबिल हो जाओ कि एक दूसरे की गरिमा को बिना कुछ भी कहे ही बनाये रख सको ।

माँ ! तुम न होती तो मेरा क्या होता ... 

हा ! हा ! हा ! मैं ऐसा इसीलिये बोल रही हूँ क्योंकि मैं खुद को बहुत प्यार करती हूँ । मेरी बेटी परेशान होती तो मैं भी तो चैन से नहीं रह पाती । 

                 .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

5 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और सुन्दर।
    दूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।
    आपके यहाँ भी कमेंट अधिक आयेंगे।

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  2. निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'जी नमस्कार, पहले प्यार को इतनी खूबसूरती से एक युवा व‍िद्राही मन को समझाया ...एक संदेश देती लघुकथा ...

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