महक रहा है हलका - हलका ,
बालों में गूँथा जो गजरा ।
देख रहा है छलका - छलका ,
नयनन में हँसता वो कजरा ।।
बोल रही है बहकी - बहकी ,
हिना हथेली में मुस्काई ।
बिखर गई थी ढ़लके - ढ़लके ,
चुनरी माथे पर वो छाई ।।
चूड़ी कंगन करते पागल ,
छनक - छनक कर गाते जाये ।
पाँवों में पहनी जो पायल ,
भरमाती उर को वो जाये ।।
सजनी मचले बहकी - बहकी ,
घर आये परदेसी साजन ।
बिंदिया खिली चमकी - चमकी ,
सजा गया विरहन का सावन ।।
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
मनबावन और सार्थक गीत।
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