शनिवार, 30 नवंबर 2019

लघुकथा : कली

लघुकथा : कली

उपवन में बहुत सारे रंग - बिरंगे फूल खिले थे । वहाँ घूमते हुए बच्चे- बड़े सभी उनको देख कर माली की सराहना कर रहे थे कि उसने कितने जतन किये होंगे तब कहीं उपवन इतने रंगों से भर उठा था ।

गुलाबी रंगत लिये हुए एक अधखिली सी कली पर निगाह पड़ते ही कई हाथ उसको शाख से अलग करने को बढ़े ,परन्तु माली की सजग निगाहों ने उन बढ़े हुए हाथों को रोक दिया । कली फिर अपनी धुन में साँसें भर झूमने लगी ,तभी माली दूसरे पौधों की देखभाल के लिये चला गया ।

थोड़ी देर में वापस आने पर कली अपनी शाख से गायब थी । क्रोध - आक्रोश से भर कर उसने सब तरफ देखा पर वह कहीं नजर नहीं आयी ... न ही किसी की जुल्फों में और न ही किसी के दामन में । बेबस सा वह वहीं नीचे बैठ गया । अनायास ही उसकी निगाह पड़ी किसीने कली को तोड़ कर ,उसकी पंखुड़ियों को नोच कर झुरमुट में फेंक दिया था ।

वह विवश उसको देखता रह गया ...

अब वहाँ कुछ आवाजें गूँज रहीं थीं ...

इसका रंग कितना प्यारा था ...

खुशबू कितनी अच्छी आ रही थी ...

इतने सारे फूलों में एकदम अलग लग रही थी ...

कली रूप में ही अभी इतनी प्यारी लग रही थी ,पूरा खिल कर तो ....

माली तिलमिला उठा ,"जब इस कली को कोई तोड़ रहा था ,तब भी तो यहीं थे न आप सब ... "

          ... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

लघुकथा : पुनर्विवाह

लघुकथा : पुनर्विवाह

"सुनो ... "
"हूँ ... "
मनुहार करती आवाज ,"इधर देखो न ... "
हँसी दबाती सी आवाज ,"तुमने तो सुनने को कहा था ... "
"जब इतना समझती हो तो हाँ क्यों नहीं बोलती ... "
"मैं क्यों हाँ बोलूँ ,तुमको पूछना तो पड़ेगा ही ... "
नजरें मिल कर खिलखिला पड़ीं ,"चलो न ... अब पुनर्विवाह कर ही लेते हैं !"
"पुनर्विवाह ... "
"हाँ ! हमारे मन और आत्मा का विवाह तो कब का हो चुका है ... अब ये समाज के साक्ष्य और मन्त्रों वाली भी कर ही लेते हैं ... "
वहीं कहीं दूर आसमान में खिला इंद्रधनुष नजरों में सज  गया ...
       .... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

बुधवार, 13 नवंबर 2019

बचपन

बचपन

मासूम बचपन तलाश में चल पड़ा
सूर्य किरणों के जगने से भी पहले

भूख को दबा मन को किया कड़ा
सुन नहीं मिलेगा दान बिक्री के पहले

खुरचती आँते कहती नहीं ये कूड़ा
कूड़े की गन्दगी कहती भूख सह ले

रोटी की तलाश में वो फिर चल पड़ा
लिए बोरी कांधे पर दिखे और भर ले

ढेर में दिखती जूठन मन ठिठका अटका
समेट ले  कूड़ा समझ कर या पेट भर ले

विवश बचपन हाथ फैलाये मजबूर खड़ा
उपदेश से ही शायद पेट खुद को भर ले

   ... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

लघुकथा : एहसास संस्कारों का

लघुकथा : एहसास संस्कारों का

पूजा का सामान संजोते हुए ,तृषा ने एक लिफ़ाफा भी रख लिया था ,बड़े भाई के टीका का सामान मिलने पर देने के लिये । सच कितने वर्ष बीत गए चौक के पाटे पर भाई का टीका किये । भीगी पलकें सुखाने के लिये उठे हुए उसके हाथ ,घण्टी की आवाज पर ठिठक से गये ।आहा ... सामने बड़े भाई को लिये हुए उनका बेटा अवि  खड़ा था ,मुस्कराता हुआ भइया को सम्हाले !

 तृषा अपने अंतरमन तक तृप्ति का अनुभव करती भतीजे अवि को लाड़ करती दुआओं से भर दिया था । भावातिरेक में बोल उठी ,"बेटा तुमने बहुत बड़ा एहसान किया ,भइया को यहाँ ला कर । मेरी वर्षों की चाहत पूरी हो गयी । बहुत बड़ा उपकार किया बेटा तुमने । "

अवि ने हँसते हुए अपने पिता और बुआ के हाथों को थाम लिया ,"बुआ - पापा मैं अपने बचपन से ही आप दोनों को इस त्योहार पर जिम्मेदारियों की वजह से मन मसोसते हुए देखता आया हूँ । अब मैंने ये निश्चय किया है कि हर वर्ष इस दिन आप दोनों साथ होंगे । जब जिसको सुविधा होगी ,मैं एक दूसरे के पास ले आऊंगा । और बुआ मैंने यह कोई उपकार नहीं किया है । यह तो सिर्फ आप लोगों के दिये हुए संस्कार हैं । "
       .... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

शनिवार, 9 नवंबर 2019

गीत : खुला ईश का द्वार है

हरि हमेशा खुला ईश का द्वार है
मुक्ति के बिना सकल विश्व निस्सार है

चाहती हूँ मिले मेंहदी की महक
हर कदम पर बिछा तप्त अंगार है

वासना से भरी है मचलती लालसा
मुश्किलों से मिला अब यहाँ प्यार है

जाल में फँसा तड़पाता ये मानव
चाँदनी को निगलता निशा का प्यार है

सिसकती वो रही सिमटती बिखरती
मुक्ति की कल्पना भी निराधार है
     ... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"