गुरुवार, 21 जनवरी 2021

व्यर्थ साँसें क्यों है गंवाए !

 मदिर मन्थर मोहक मलयानिल

नतनयन नवयौवन निरखे
सुमधुर सलोना सज्ज सा सपना
धैर्य धरे धरणी अब कैसे
पीत पात सरस धड़के हिया
गोरा गात नित धूमिल होय
धूम्र रेखा सी जीवन रेखा
पंकज सरस गात नचावे
मान न जाने ,मन मनावे
जीवन ज्योति गलती जाए
#निवी सुध ले तू अपने मन की
व्यर्थ साँसें क्यों है गंवाए !
  ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

मंगलवार, 19 जनवरी 2021

लघुकथा : एक टुकड़ा आसमान का


भीनी- भीनी सी बदली का एक छोटा सा टुकड़ा दूर कहीं आसमान में लहराता दिख रहा था ,जैसे अपने झुण्ड से एक मेमना अलग हो भटक रहा हो । कभी वह सूरज की थोड़ी ऊष्ण होती सी किरणों के सामने आ कर आँखों को सुकून दे जाती ,तो कभी तप्त किरणों के आगे से जैसे जल्दी से हट जाती थी । 


बहती हुई नदी की चंचल धारा ने उससे पूछा ,"बहन ! एक बात बताओ कि ,तुम को सूरज की किरणों से कोई शिकायत नहीं है क्या ... आखिर बदन तो तुम्हारा भी जल कर सिकुड़ जाता है !"


बदली का वह नन्हा सा टुकड़ा मानो और भी हँस पड़ा ,"नहीं ... सूरज क्या ,मुझे तो किसी से भी बिलकुल भी शिकायत नहीं है क्योंकि तीखापन उनकी प्रवृत्ति है और शीतलता मेरी । दो विपरीत प्रवृत्तियों से एक जैसा होने की उम्मीद या शिकायत करना तो उन दोनों के ही साथ अत्याचार होगा । वैसे नदी बहना ! जब अपना रास्ता बदलती हो ,तब करती तो तुम भी यही हो 😅"


नदी की भी लहरें मचल उठीं ,मानो उसने अट्टहास किया हो ,"दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए अपना अस्तित्व बनाये और बचाये रखने की सकारात्मकता सब में नहीं होती है ,परन्तु जिस ने भी इस बात को समझ लिया वही अपने हिस्से के आसमान के साथ ,सुकून से रह पाता है ।"

       ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

रविवार, 17 जनवरी 2021

ज़िन्दगी और बाग़वानी

 ज़िन्दगी का हर आता जाता पल और उसके अनुभव बदलते मौसम की बागवानी का एहसास कराते रहते हैं । कभी सब कुछ सही तो मन बसन्त अनुभव करता ,नहीं तो लू के थपेड़े सा झकझोर जाता है । मन खुश तो गुलाब की खुशबू ,नहीं तो काँटे की चुभन । 


बावरा मन ऐसे ही किसी लम्हे में ज़िन्दगी को बानी जैसा समझने लगता है । वैसे सच कहूँ तो जीवन का चक्र व्यक्ति का हो या पौधों का एक सा ही लगता है । वैसे ही गर्भ में जीवन का अंकुरण ,चन्द मुस्कराती पत्तियों की झलक से ठुमकते क़दम और उन डगमगाते कदमों को गिरने से बचाने के लिए बड़ों की सलाह रूपी बाड़ । कभी वो बाड़ काँटे चुभोती तो कभी उस पर अंदर से ममता के लेप जैसी किसी नरम गुच्छेदार लता की परत । माली जैसे कुछ आदतों को तराश कर हटाना ,तो कुछ को उनकी प्राकृतिक प्रकृति से सर्वथा विपरीत किसी अन्य आकार में ढाल देना मानो एक चित्रकार के हाथों में डॉक्टरों वाले उपकरण थमा देना ... क्योंकि माली उस पौधे को उस आकार में ही देखना चाहता है अन्य कुछ हुआ तो सब बेकार !

पौधों की एक बहुत अच्छी विशेषता होती है कि किसी सूखते हुए और फल न देने वाले पौधे के पास यदि किसी फलदार पौधे को रख दिया जाए तो पहले का सूखता हुआ पौधा भी लहलहा उठता है । ज़िन्दगी को बाग़वानी का पर्याय माननेवाले हम ,असली जीवन में यह भूल जाते हैं और कभी नज़र का अंदेशा जता कर तो कभी टोक लगने का डर बता कर परेशानहाल व्यक्ति को और भी उपेक्षित करते रहते हैं ,जो सर्वथा गलत्त है ।

एक चीज़ मुझे और खलती है कि पौधों को समुचित दूरी बना कर रखा जाए या एकदम झुण्ड बना कर ,उनमें आनेवाले फूलों की खुशबू कभी कम नहीं होती ,न ही उनका सौंदर्य । असल ज़िन्दगी में रिश्तों के बीच स्पेस की चाहत इस हद तक बढ़ जाती है कि उनकी पहचान ही विस्मृति के गर्त में डूब जाती है । यहाँ पर भी ज़िन्दगी और बाग़वानी थोड़ा अलग से होते जाते हैं ।

अन्त में मैं सिर्फ यही कहना चाहूँगी कि सिर्फ जीवन के प्रारम्भिक दिन ही बागवानी से साम्यता रखते हैं ,फिर धीरे - धीरे दोनों की मूल प्रकृति अलग होती जाती है और हम आदर्शवाद की दुनिया मे विचरते 'करना चाहिए' की बात करने के लिये साम्यता देखने और दिखाने लगते हैं । यदि हम ज़िन्दगी और बागवानी को एक कहना और समझना चाहते हैं तो हमको एक - दूसरे को सकारात्मकता देने की दिशा में भी सतत प्रयत्नशील रहना चाहिये । 

ज़िन्दगी आती हुई साँसें हैं और बाग़वानी जीवन शैली !
                                          ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

गलियाँ यादों की (१)

यादों के गलियारे में दस्तक दे ही रही थी कि एक याद ने अनायास ही दामन थाम लिया । हिन्दी दिवस और हिन्दी भाषा से जुड़ी हुई है यह याद 😊


एक बार हिन्दी - दिवस पर अमित जी के साथ ही उनके पूर्व छात्र सम्मिलन में गयी थी । वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम में सब की सहभागिता का आनन्द ले रही थी कि अचानक ही मंच से उद्घोषक की आवाज़ आयी ,"अब आप सब के समक्ष मिसेज अमित अपनी एक रचना सुनाएंगी ... स्वागत है आपका ।" सब के साथ मैं भी तालियाँ बजा रही थी उनके स्वागत में । तभी उद्घोषक ने मेरी तरफ़ देख कर हँसते हुए फिर कहा ,"दो अमित हैं तो कन्फ्यूज़न हो रहा है न ! अब मैं अलग तरह से बुलाता हूँ ... आइये मिसेज बमबम ।" दरअसल मेरे पति को उनके मित्र 'बमबम' कहते हैं । बहरहाल इस अचानक आये बाउंसर को झेलते हुए मोबाइल की तलाशी ली और एक रचना सुना दी । और हाँ ! तालियाँ भी बटोर लीं 😅😅


बाद में हम सब बातें कर रहे थे तो एक महिला एकदम चुप बैठी बस सुन रही थीं । एकाध बार उनको भी बातों में शामिल करने का प्रयास किया, पर वो प्यारी सी मुस्कान दे चुप ही रह गईं । थोड़ी देर बाद अकेले मिलते ही बातें करने लगीं और बोलीं ,"असल में मुझे अंग्रेजी नहीं आती है । यहाँ अधिकतर वही बोलते हैं तो मैं चुप ही रहती हूँ । " मैंने उनसे बातें की और मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया कि मैं भी हिन्दी ही बोलती हूँ । 


बातों में ही पता चला कि उनका और मेरा मायका एक ही है ,गोरखपुर ! मैंने छूटते ही कहा ,"का बहिनी अब ले छुपवले रहलू ।" वो एकदम ही संकुचित हो गईं ,"अरे ऐसे न बोलिये ,सब इधर ही देख रहे हैं ।" मैंने उनको समझाया कि अपनी भाषा अपनी ही है ,इसमें कोई शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए । फिर मैं भोजपुरी ही बोलती रही और वो हिन्दी । इस तरह उनकी अंग्रेजी में न बोल पाने की हिचक थोड़ी कम हुई । 


उस शाम और मेरे इस तरह बिंदास भोजपुरी और हिन्दी बोलने से हमारे समूह को उनके रूप में एक और हिन्दी की कवयित्री मिल गयी । 

                  ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

हौसला और विश्वास


हौसला और विश्वास 

मानव मन कह लीजिये या ज़िन्दगी के रंग ,बड़े ही विचित्र होते हैं । जब भी ज़िन्दगी ठोकर के रूप में फुरसत के दो पल देती है ,मन या तो व्यतीत हुए अतीत की जुगाली करता रह जाता है या फिर अनदेखे से भविष्य की चिंता ... वर्तमान की न तो बात करता है ,न ही विचार और ज़िन्दगी एक खाली पड़े जार सी रीती छोड़ चल देता है ,इस जहान से उस अनदेखे जहान की यात्रा पर । 


ऊपर बैठा हमारी जीवन डोर का नियंता ,अनगिनत पलों और भावनाओं की लचीली डोर में उलझा कर ,परन्तु एकदम साफ स्लेट जैसा मन दे कर भेजता है और हम अपने परिवेश के अनुसार उन लम्हों के गुण - अवगुण सोचे बिना ही ,ऊपर ला कर साँसें भरते चल पड़ते हैं एक अनजानी सी रिले रेस में । जब भी कहीं डोर में तनाव ला कर ,ज़िन्दगी हमारे क़दम रोकती है ,हम लड़खड़ा कर एकदम ही निराश हो अंधकूप में गिर कर छटपटाने लगते हैं और समय को कोसने लगते हैं । जबकि कितने भी बुरे दौर से गुज़र रही हो ज़िन्दगी ,चाहे एकदम नन्ही सी ही हो ,परन्तु एक आशा की किरण वो अपने दामन में सदैव संजोये रखती है । उस समय सिर्फ़ हम ही कुसूरवार होते हैं उस को न देख पाने के ।


कभी - कभी शारीरिक परेशानियाँ हमें घेर लेती हैं ,हम स्वयं को एकदम ही बेचारा सा अनुभव करते हैं और सोचते हैं कि हम कभी कुछ करना तो बहुत दूर की बात है, उठ भी नहीं सकेंगे परन्तु तभी अपने किसी बेहद प्रिय के आने की भनक पाते ही उसके स्वागत की तैयारियों में दिल - ओ - जाँ से जुट जाते हैं । उस समय की यदि कोई हमारी तस्वीर ले कर कुछ समय पहले की निराश दम तोड़ती तस्वीर से मिलाये तो लगेगा ही नहीं कि दोनों तसवीरें एक ही व्यक्ति की हैं । यदि इसमें कहीं कोई जादू है तो वह सिर्फ मनःस्थिति बदलने का ही है ।


इन सारी बातों का सिर्फ एक ही मतलब है कि हमारे जीवन में बहुत सारे रंग भरे हुए हैं ,आवश्यकता बस इतनी ही है कि अपनी ज़िन्दगी के सूरज और चाँद के सामने से ग्रहण भरे पलों के बीत जाने देने की जिजीविषा बनाये रखने का । 


एक बात और भी है यदि रगों में बहता है तो बी पॉजिटिव ( b +) सिर्फ एक ब्लड ग्रुप का नाम है ,परन्तु यदि वही दिल - दिमाग में बसेरा कर लें तो जीवन शैली बन कर ज़िन्दगी को इन्द्रधनुष बना देते हैं !

... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शनिवार, 2 जनवरी 2021

#बोलो_क्या_क्या_खरीदोगे


बचपन में घर में काका को अक्सर गुनगुनाते सुना था ,"बड़ भाग मानुस तन पायो ,माया में ही गंवायो " ... कई बार पूछने और उनके समझाने पर भी ,मेरे बालमन को यह मायामोह का गोरखधंधा कुछ समझ नहीं आया था । उसके बाद ज़िन्दगी के मायाजाल ने क्रमशः मुझे भी अपनी माया में उलझा लिया और कब बचपन के खेल खिलौने के स्थान पर कॉपी - किताब आ गए ,और फिर ज़िन्दगी के झिलमिलाते हुए अन्य सोपान जैसे इस विचार से ही मन को दूर करते गए । आज इतने लम्बे सफ़र के बाद अनजाने में ही ,मैं भी यही भजन गुनगुनाने लगी हूँ ।


जीवन के अब तक के सफ़र में दोस्त भी मिले ,उम्मीद भरते हुए ख़्वाब भी देखे ... सेहत के प्रति ध्यान भी तभी गया जब उसने कहीं स्पीडब्रेकर तो कभी माइलस्टोन दिखा कर चेताया । एक तरह से सिर्फ एक पहले से पूर्वनिर्धारित ढांचे में ही रंग भरते गए बिना यह सोचे कि हम चाहते क्या हैं या हममें क्या करने की काबिलियत है ! ईश्वर ने अपनी प्रत्येक कृति को कुछ विशेष करने के लिये ही बनाया होता है ,जिसके बारे में कुछ सोचने या जानने का प्रयास किए बिना ही , पहले से तैयार रास्ते पर चलने की जल्दी में जीवन ख़तम कर इस दुनिया से चल देते हैं । 


बहरहाल यह सोचने के स्थान पर कि हम क्या कर सकते थे और क्या नहीं किया ... और यह भी नहीं सोचूंगी कि जीवन कितना बचा है या उसकी उपयोगिता क्या है ... अब बस सिर्फ वही करना चाहूँगी जिसमें मेरे मन को सुकून मिल रहा हो 😊


#ऐसे_दोस्त चाहूँगी जो खीर में नमक पड़ जाने पर भी उसके स्वाद में अपनी सकारात्मकता से नया स्वाद भर सकें और यह देख कर कि मैं किसी प्रकार चल पा रही हूँ ,दौड़ नहीं सकती की लाचारी के स्थान पर ,यह कहने का जज़्बा रखते हों कि अपने दम पर चल रही हो ,किसी पर निर्भर नहीं हो । मेरे लिये पहले भी और अब भी दोस्त का मतलब ही होता है एक ऐसी शख़्सियत जिसके पास मेरे लिये #वक़्त हो ,उसके दिल - दिमाग़ में #मुहब्बत हो ... ज़िन्दगी कितने भी उबड़ खाबड़ रास्तों पर चल रही हो ,वह एक #उम्मीद की रौशन किरण हो ... दावत पर आमंत्रित कर के दूसरी सुबह सैर पर ले जाना न भूले कि #सेहत न बिगड़े । लब्बोलुआब यह है कि मेरी कमी / दुर्बलता को अपनी सकारात्मकता से सुधार सके और सँवार भी दे । ( यह पंक्ति भी एक मित्र के इस कथन को न समझ पाने पर लिखी है 😄)


मैं ऐसे दोस्त को खोजने के लिये परिवार के बाहर जाऊँ यह जरूरी भी नहीं 😅 यह फोन पर भी आवाज़ भाँप लेने वाले अपने बच्चों में भी मिलता है ,तो कभी सुबह की चाय बनाने का अनकहा सा आलस चेहरे पर भाँप लेने वाले हमसफ़र में मिल जाता है  ...#शुक्रिया_ज़िन्दगी ...  निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'