शनिवार, 11 दिसंबर 2021

हाइकु : अहान

 याद आ गई

अल्हड़ अठखेली

शिशु की बोली !


मेरा जहान

मिठास भरी शान

प्यारा अहान !


खिला विहान

हँस पड़ा जहान

मिला अहान !


तीसरी पीढ़ी

खुशियों की हो सीढ़ी

ईश कृपालु !


भोले का हाथ 

अहान तेरे माथ

रहेगा साथ ! #निवी

रविवार, 5 दिसंबर 2021

कहानी : मन्ज़िल

विभा जैसे ज़िंदगी की जद्दोजहद से उबर कर शांत हो चुकी थी । वैभव की तरफ देखते हुए उसने पूछा ,"ले आये न ... कोई दिक्कत तो नहीं हुई न ... कोई उल्टे सीधे प्रश्न तो नहीं किये गए तुमसे ? " 


वैभव ने इंकार में सिर हिलाया । दोनों शांत बैठे ,बालकनी से झूमते पेड़ - पौधों को देखते रहे । सभी चीजें यथावत थीं । पंछियों का कलरव गुंजित हो रहा था ,दोस्तों संग बच्चे भी खेल रहे थे । वो वहाँ हैं या नहीं, इस पर जैसे किसी का भी ध्यान ही नहीं जा रहा था ।


"विभा ! हम सही कर रहे हैं न ... तुम चाहो तो एक बार और सोच लो ,कहीं ऐसा न हो कि मेरा साथ देने के चक्कर में तुम हड़बड़ी कर रही हो ",वैभव ने विभा का हाथ थामते हुए कहा ।


विभा की आँखों में शून्य फैलता गया ," नहीं वैभव यह निर्णय हमारा है, हममें से किसी एक का नहीं । जीवन के प्रत्येक उतार चढ़ाव में हम साथ रहे हैं ,फिर अब यह संशय क्यों कर रहे हो ? जानते हो अब से पहले मेरे मन में हर पल एक उलझन ,एक डर भरी उत्तेजना रहती थी ,परन्तु अब इस पल में सब कुछ इतना शांत और स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि किसी भी तरह के पुनर्विचार के लिए स्थान बचा ही नहीं । सच पूछो तो अभी बस एक विचार गूँज रहा है कि ऐसी शान्ति पहले क्यों नहीं थी ! पर छोड़ो ,अब सब ठीक है । "


थोड़ी देर तक सिर्फ सन्नाटा ही अपने पर फड़फड़ाता रहा । अचानक ही वैभव घुम कर पूछ बैठा ,"सब के पैसे तो दे दिए हैं कि नहीं ... कुछ बचा क्या ?"। विभा के अधरों पर हल्की सी स्मित लहरा गयी ,"ज़िन्दगी के इतने सारे उधार चढ़ गए हैं कि बस किसी प्रकार सबका हिसाब कर दिया । अभी भी थोड़े ... बहुत थोड़े पैसे बचे रह गए हैं । बताओ मैं किसी का हिसाब भूल रही हूँ क्या ? "


उसने सारी दुनिया का प्यार आँखों में भर कर विभा को देखा ,"ज़िन्दगी से तो पहले भी बहुत कुछ बड़ा सा नहीं चाहा था और अब भी एक बहुत छोटी सी चाहत जग गयी है । आज आखिरी बार तुम्हारे साथ तुम्हारी पसन्दीदा दुकान पर तुमको गोलगप्पे खिलाना चाहता हूँ । "


एक निश्चय भरे विश्वास से विभा ने वैभव का हाथ पकड़ा और वो दोनों घर से निकल गए । आज सड़क पर कुछ ज्यादा ही भीड़ थी ,आज प्रतिमा विसर्जन का दिन जो था । सभी तरफ़ अबीर और गुलाल के बादल उड़ रहे थे । कहीं - कहीं तो सिंदूर खेला जा रहा था । आसपास के पण्डालों के सामने गाड़ियाँ खड़ी थीं प्रतिमाओं को लेकर जाने के लिए । सच ईश्वर भी जब स्थूल रुप से इस पृथ्वी पर आते हैं तब उनको जाना ही पड़ता है ,फिर इन्सानों की क्या बात करें ,यही सोचते दोनों चौराहे से मुड़ने को हुए ही थे कि सामने से आती ट्राइसिकल से टकरा गए । उन्होंने उठते हुए देखा कि उस ट्राइसिकल पर बैठा व्यक्ति स्वयं को सम्हालने के स्थान पर उनको सम्हालने के लिए हाथ बढ़ा रहा था । झुंझलाहट से भरे वैभव ने उस पर अपनी भड़ास निकालनी चाही कि पहले वह खुद को सम्हाले तब उनकी सहायता करे । वह व्यक्ति हँस पड़ा ,"अरे भाई ! यदि किसी की सहायता करने से पहले स्वयं के उठने की राह देखूँगा तब तो मैं किसी की भी सहायता कर ही नहीं पाऊँगा । मैं तो दिव्यांग हूँ और कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता । " 


उसको देख कर वैभव और विभा विस्मय से भर उठे ,"इतने विवश हो कर भी तुम हमको उठाने का साहस कैसे कर ले रहे हो !" 


वह हँस पड़ा ,"एक समय था जब नौकरी छूटने और सब कुछ गवां कर ,परेशान हो कर स्वयं को समाप्त करने निकल पड़ा था और यही सोच रहा था कि मैं तो एक बहुत मामूली सा आम आदमी हूँ जिसके रहने अथवा न रहने से किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और कोई कभी याद भी नहीं करेगा ... पर जानते हो मैं मर नहीं पाया । स्वयं को समाप्त करने के प्रयास में हुई दुर्घटना में मेरे पैर बेकार हो गए । मैं और भी लाचार हो गया परन्तु तभी कुछ ऐसे अपने ,जिनके बारे में मैं सोचना भी भूल गया था , उन की आँखों में छलकती हुई नमी ने मेरे राह को नमी की दृढ़ता दी । मुझे समझ आया कि जानेवाला तो एक पल में ही चला जाता है परन्तु बहुत से लोगों की यादों में ज़िन्दगी भर की नमी दे जाता है । बस उसी पल मैंने शून्य से प्रारम्भ किया ... और देखो आज बिना किसी संकोच के चौराहे पर अगरबत्ती बेच रहा हूँ । हँस भी रहा हूँ और गिरने के बाद स्वयं से पहले दूसरों को उठाने का प्रयास करता हूँ । मेरी छोड़ो तुम लोग बताओ कहाँ जाना है ? मैं तुम लोगों को वहाँ तक ले चलता हूँ ।"


विभा और वैभव ने एक दूसरे को देखा और बोल पड़े ,"दोस्त ! अब हमको ज़िन्दगी की तरफ़ जाना है ।" #निवी