शुक्रवार, 25 मार्च 2022

अथ नाम कथा

#अथ_नाम_कथा

अपने नाम ,या कह लूँ कि व्यक्तिगत रूप से सिर्फ़ अपने लिये कभी सोचा ही नहीं।जीवन जब जिस राह ले गया सहज भाव से बहती चली गयी। 

अब जीवन के इस संध्याकाल में जब मिसिज़ श्रीवास्तव के स्थान पर स्वयं के लिए #निवी या #निवेदिता का सम्बोधन पाती हूँ तो सच में मन को एक अलग सा ही सुकून मिलता है और इन्हीं में से किसी लम्हे ने दस्तक दी थी कि यह नाम मुझे मिला कैसे!


चार भाइयों के बाद मेरा जन्म हुआ था।सबकी बेहद लाडली थी और जितने सदस्य उतने नाम पड़ते चले गये,परन्तु उन सब के दिये गए नामों पर भारी पड़ गया ,घर में काम करनेवाली सहायिका ,हम सब की कक्को का दिया नाम। उन्होंने बड़े अधिकार से सबको हड़का लिया था,"हमार बहिनी क ई का नाम रखत हईं आप सब। हमार परी अइसन बिटियारानी के सब लोग बेबी कह।" इस प्रकार पहला नाम 'बेबी' रखा गया 😄 


इस बेबी नाम के साथ हम दुनिया के मैदान में तो आ नहीं सकते थे, तो फिर से एक नाम की तलाश शुरू हुई।सभी अपनी पसन्द के नामों के साथ फिर से आमने-सामने थे। 


अबकी बार सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सभी लोग चिट पर अपनी पसन्द के नाम लिख कर मेरे सामने रख दें और मैं जो भी चिट उठा लूंगी वही नाम रखा जायेगा।


दीन-दुनिया से बेखबर ,सात-आठ महीने की बच्ची के सामने बहुत सारी चिट आ गयी, सभी अपनी तरफ से होशियारी दिखा रहे थे कि उनकी चिट ऊपर रहे और उठा ली जाये ... पर इस बच्ची का क्या करते उसने करवट बदली और ढ़ेरी के नीचे से 'निवेदिता' नाम की चिट निकाल ली। पूरे होश ओ हवास में, इस बिन्दु पर मैं ज़िम्मेदारी लेती हूँ कि अपना निवेदिता नाम मैंने खुद रखा 😊 


स्कूल/ कॉलेज में भी निवी, दिवी,नीतू,तिन्नी जैसे कई नामों से पुकारा सबने।जन्म के परिवेश ने सरनेम 'वर्मा' दिया जिसको विवाह ने बदल कर 'श्रीवास्तव' कर दिया।


नाम बदलने का सिलसिला यहीं नहीं थमा।लेखन तो बहुत पहले से ही करती थी परन्तु जब मंचो की तरफ़ रुख किया, तब उपनाम रखने की जरूरत अनुभव हुई। मेरी मेंटोर, जिन्होंने मुझको मंच का रास्ता दिखाया, उनका भी नाम 'निवेदिता श्रीवास्तव' ही था। एक साथ रहने पर हम तो मजे लेते पर एक से नाम सबको कन्फ्यूज भी खूब करते थे। इस उलझन से बचने के लिये मेरी वरिष्ठ ने अपने नाम के साथ 'श्री' जोड़ा और मैंने 'निवी' ।


जब थोड़ी समझ आयी,तब इस नाम की महान विभूतियों के बारे में भी जाना और एक अनकही सी ज़िम्मेदारी आ गयी कि बेशक मैं उनके जैसी कुछ विशिष्ट न बन पाऊँ पर जितना सम्भव होगा उतना सभो में सकारात्मक भाव भरूँगी और कभी भी किसी को धोखा नहीं दूँगी।

           #निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

            #लखनऊ

गुरुवार, 24 मार्च 2022

मेरी अनलिखी सी कविता!


लेखनी ने कहा
आज तुम लिखो
एक कविता
कुछ यादों भरी
कुछ भावों भरी!

पन्ने सारे कोरे रह गए
कहीं सूख चली थी
लेखनी की स्याही
तरलता की चाहत में!

भटकती गयी कल्पना
कुछ नमी सी बह चली है
पलकों की कोरों से
कपोलों तक की यात्रा में!

अब लेखनी से पूछ रही हूँ
कहीं वही तो नहीं
मेरी अनलिखी सी कविता
जिसने संजो रखे हैं
बिम्ब मेरे हृदय के!
निवेदिता श्रीवास्तव #निवी
#लखनऊ

शनिवार, 19 मार्च 2022

क्यों पूछ्ते हैं ...

 #जय_माँ_शारदे 🙏


#मुक्तपटल_उन्मुक्तमन 


क्यों पूछ्ते हैं बारहा ख्याल मेरा 

इन आँखों में आशनाई रहती है।


वो हँसी रक्स करती है अब भी 

यहीं कहीं यादों में अरुणाई रहती है।


कभी थामा था जिन नज़रों ने मुझ को 

उसकी निगाहों तले अमराई रहती है।


मेरी यादों में बसता है समंदर गहरा 

इन बन्धनों में ही #निवी बेवफाई रहती है।

  निवेदिता श्रीवास्तव #निवी

      #लखनऊ

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

क्षणिकाएं

क्षणिका 


नहीं देखना चाहती तुमको

रूह भी तड़पी है 

तेरी बेवफ़ाई पर

माफ़ कर दिया तुमको

हाँ! इश्क़ किया है तुमसे !


***

चाहतें बेपनाह 

यादें बेलग़ाम

इश्क़ लापरवाह !

***

चाहतें सुरसा सी

लपट सी धधक रही 

कफ़न के बाद भी 

चाहत लकड़ी की

या दो गज़ ज़मीं!


***

रिसती साँसों की

सुराखों भरी 

फ़टी जेब सी ज़िन्दगी

वक़्त किसका हुआ!

  ... निवेदिता #निवी 

        #लखनऊ

मंगलवार, 8 मार्च 2022

एक चिंगारी ...

एक चिंगारी ...

निशि दिवस की उजास बन
रवि शशि की किरण वह प्यारी थी,
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
जून माह इतना इतराता इठलाता
जन्म लिया था तभी इस चिंगारी ने।
अमृतसर की शौर्य भूमि ने अलख जगा
साहस भरा हर आती सजग साँस ने।
महिला सशक्तिकरण का प्रतिमान बनी वो
सत्य और कर्त्तव्य की वो ध्वजाधारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
शिक्षा ले अंग्रेजी साहित्य और राजनीति शास्त्र में
पढ़ा रही थी वह अमृतसर कॉलेज में।
समय ने जब अनायास ही खोली थी पलकें
तब किरण बेदी बनी एक पुलिस अधिकारी।
शौर्य ,राष्ट्रपति ,मैग्सेसे जैसे अनेकानेक
पदकों से सम्मानित जिम्मेदार अधिकारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
गलती किसी की कभी नहीं थी बख्शी
पार्किंग गलत होने पर उठवाई उसने।
तत्कालीन प्रधानमंत्री की भी गाड़ी थी
ट्रैफिक दिल्ली का भी खूब सुधारा उसने।
बन महानिरीक्षक सँवारा तिहाड़ जेल को उसने
अवमानना के सवाल पर खूब चली वो दुधारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
*
जीवन भर कभी हार नहीं उसने मानी थी
मानवता के शत्रुओं से रार खूब ही ठानी थी।
यदाकदा विवादों के उछले छींटे बहुत सारे थे
लिखी गईं उसपर पुस्तकें ,बनी फिल्में भी कई सारी थीं।
नशामुक्ति और प्रौढ़ शिक्षा की अलख जगा
समाज सुधार का प्रयास कर निभाई जिम्मेदारी थी!
एक चिंगारी सी लगती वो
शौर्य भरी किरण बेदी न्यारी थी!
... निवेदिता 'निवी'
     लखनऊ

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

लघुकथा : हौसलों की उड़ान

 हौसलों की उड़ान


अलसायी सी सुबह में आस भरती आवाज़ ने ,मुँदी पलकों से कहा ,"चाय पियोगी ?"


"छोड़ो ... "


"क्यों ... क्या हुआ ?"


"अब कौन चाय पीने के लिए इतने सरंजाम सजाए ",और वह बेबसी से अपने पैरों पर चढ़े प्लास्टर को देखने लगी ।


"हाँ ! ये भी सही कहा तुमने ",नेह की सूर्य किरण मुस्कुरा उठी ,"वैसे भी हम चाय कहाँ पीते हैं ,हम तो एक दूसरे के साथ ज़िन्दगी की यादें पीते हैं । चलो वही पीते हैं ",उसने स्लिपडिस्क के दर्द से कराहती पीठ पर एक हाथ रखते हुए दूसरा हाथ छड़ी की मूठ पर रखा ।


प्लास्टर में बन्द बेबसी को पीछे धकेलती हुई वह भी चन्द्रकिरण सी शीतल हो गई और संकेतिका दिखाती खिलखिला उठी ,"याद रखना कि अब मुझे न तो ब्लैक कॉफी पीनी है और न ही कड़वी - कसैली चाय ... मुझको तो तुम बस अदरख - इलायची सी सौंधी - सौंधी ख़ुशबूदार चाय पिलाना ।"


सिरहाने रखी एलबम से खिलखिलाती तस्वीरों ने उनके हाथों में हौसलों की उड़ान से भर दिया । 

#निवेदिता_निवी 

  लखनऊ