क्षणिका
नहीं देखना चाहती तुमको
रूह भी तड़पी है
तेरी बेवफ़ाई पर
माफ़ कर दिया तुमको
हाँ! इश्क़ किया है तुमसे !
***
चाहतें बेपनाह
यादें बेलग़ाम
इश्क़ लापरवाह !
***
चाहतें सुरसा सी
लपट सी धधक रही
कफ़न के बाद भी
चाहत लकड़ी की
या दो गज़ ज़मीं!
***
रिसती साँसों की
सुराखों भरी
फ़टी जेब सी ज़िन्दगी
वक़्त किसका हुआ!
... निवेदिता #निवी
#लखनऊ
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२ -०३ -२०२२ ) को
'भरी दोपहरी में नंगे पाँवों तपती रेत...'(चर्चा अंक-४३६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
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