बुधवार, 31 मार्च 2021

टेढ़ा अंगना ....

 प्रिय - प्रियतमा बैठ रहे बतियाय

कारण - निवारण समझ न पाय

ग्यारह नम्बर से थे फिटम फैट
कब - कैसे बन गए एट्टी एट

घर में भरा सब सरंजाम
भूल गए हम तो व्यायाम

स्विगी जोमैटो खूब मंगाया
दावत में भी माल उड़ाया

चेहरे की तो बढ़ी लुनाई
कटि सम हो गयी कलाई

कैसे सजूँ बता ओ सजना
मन मेरा हुआ अनमना

गोरी बैठी बोले टेढ़ा अंगना
करधनी बन गयी कंगना !
#निवी'

रविवार, 28 मार्च 2021

क्षणिका में क्षण भर की होली

 



चौक पूरें होली का
दहन करे राग अरु द्वेष
आशाओं के रंग घुलें
बच सके न कोई क्लेश !

***
पालन परम्पराओं का करें
देख समय की मांग
दो ग़ज़ की दूरी जरूरी
सोच में न घोलो भांग !

***
काम आएं सभी के
भूल कर भी भूले नहीं
सैनिटाइजर संग मास्क ,
थोड़ी दूरी है जरूरी
महामारी से सबको
सुरक्षित रखना है टास्क !
#निवी

बुधवार, 24 मार्च 2021

लघुकथा : एक दिन छुट्टी वाला


हाँ ! बताओ क्या करना है ।आज कोई मीटिंग नहीं ,ऑफिस भी नहीं ... क्या हेल्प करूँ ... लंच तो तुम बना ही चुकी हो ... चाय बनाऊँ इलायची डाल कर ... 🤔😀 ( बन्दा पूरे जोश ओ खरोश में )

हेल्प ... छोड़ो तुम रेस्ट करो ... चाय के साथ क्या लोगे ... ( घर मे दिख जाने का एहसान मानती बन्दी )

नहीं ... आज तो तुम रेस्ट करो ,मैं बनाता हूँ न ... ( बन्दा  एकदम टॉप ऑफ वर्ल्ड टाइप महसूस करते )

ऐसा क्या .... अच्छा ऐसा करो चाय के साथ पनीर के पकौड़े बना लेना और डिनर में एक ही सब्जी कोफ्ते बना लो साथ मे जीरा राइस ... और हाँ रोटी नहीं पूरियाँ बनाना ... डेज़र्ट चलो बाजार से रबड़ी ले आना और हाँ कॉर्नेटो भी लेते आना ... चलो तबतक मैं थोड़ा सो लेती हूँ 😅
#निवी

मंगलवार, 23 मार्च 2021

माँ ! कह तू एक कहानी ...

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🌿🌸 #माँ_शारदे_के_चरणों_में_वन्दन 🌸🌿

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माँ ! कह तू एक कहानी

जिसमें राजा हो न रानी हो !


खेल खेलती नेह बरसाती

नानाविध खाना खिलाती

प्यार लुटाती इक मइया हो 

सपनों सजी इक नइया हो

द्वार बंधी सपनों की कहानी हो 

पर जिसमें राजा हो न रानी हो !

माँ ... 


साथ तेरा कभी न छूटे 

अपना कोई कभी न रूठे

साथ मेरा हमसाया हो

तेरे आँचल का साया हो

संग बादल के चाहे न तारे हों

अंग खिले खुशियों की रवानी हो

माँ ...


बातें करनी सूखे पेड़ों की 

उलझ चुकी उन मेड़ों की

बचपन जिनमें बसता था 

कितनी बातों पर हँसता था

यादों भरी इक अंगनाई हो

सिर सहला हँसती पुरवाई हो !

माँ ....       #निवी

मंगलवार, 16 मार्च 2021

रस्साकशी ज़िन्दगी के पलड़ों की

 दो पलड़े लड़खड़ाते ... डगमगाते से मानो एक दूसरे के साथ रस्साकशी कर रहे हों । एक पल को लगता है बस अनवरत वर्षा सी वो बस बरसती जाए शब्दों से भी और नयनों से भी ... पर अगला ही पल एक आदत सा ,आ कर जैसे पसरता हुआ सा ,शब्दों का अकाल ला कर बंध्या बदली सा उन लम्हों को बिन बरसे ही काल की गोद में मुँह छुपाने की विवशता याद दिला जाता ... और वह रेगिस्तानी लम्हा तुला की कील सा स्वयं को साधता हुआ ,दोनों पलड़ों का संतुलन साधने की कोशिश में ,दूज के चाँद सी धूमिल मुस्कान दे जाता ,और ... और फिर कुछ ख़ास नहीं बस समाज और सामाजिकता के फेफड़ों में कहीं अटकी हुई साँस की धौंकनी खिलखिलाती झूम कर आती दिखाई दे जाती है । जीवन ... पता नहीं जीवन फिर आगे चलने लगता या फिर शुतुरमुर्ग बन जाता !


ख़ुश्की और नमी पता नहीं लम्हों की होती है या एक आदत की ... परन्तु होती जरूर है ... कभी परावलम्बी लगती है तो कभी धुर विरोधी ... हों या न हो परन्तु अपनी अनुपस्थिति में भी जैसे चीख - चीख कर अपनी उपस्थिति जतला देते हैं । नयनों की रूखी सी ख़ुश्की अनुभूति दे जाती है कि अभी कुछ नम शब्दों का काफ़िला यहीं दिल की भूलभुलैया सी गलियों से बहा है । नयनों में समाई बाढ़ में सारे अहसास कहीं बह जाते हैं और शब्द का कारवाँ भी ख़ामोशी से उस धारा में से सूखा ही निकल आता है ...

सच ! अजीब सी ही है यह भूलभुलैया जीवन की जो चलती हुई साँसों को अटका जाती है तो कभी रुकी हुई साँसों को जैसे साँस भरने की उम्रकैद दे जाती है । समझ ही नहीं आता है कि रुकी हुई जीवन्त साँसों को मृत कैसे मान लें और चलती हुई मुर्दा साँसों को जीवित क्यों मानें !

समाज और सामाजिकता न होती तो ये ख़ुश्की और नमी के सजीव और निर्जीव ,दोनों ही पलड़े असन्तुलित हो जीवन की कड़वाहट और उत्कट वीभत्सता की बेबाक बयानी कर जाते ... अनवरत चलती रस्साकशी साँसों के चलते रहने का बहाना बनती जाती है ... #निवी

मंगलवार, 9 मार्च 2021

हमसाया


पहेली सा जीवन 

#सुख_दुःख की धूप छाँव

चलता चरखा कर्मों का

बुनता बाना #लाभ_हानि का

#अंधेरा_उजाला हमसाया बन 

फसल बीजते जय पराजय की

कभी कभी बरसती बेबस यादें

ज्यों धुनिया धुनता #रात_दिन

अल्हड़पन का साथी था बचपन

उलझता गया क्यों #निवी का मन !

       ... निवेदिता श्रीवास्तव #निवी

सोमवार, 8 मार्च 2021

लघुकथा : #शंखनाद_कतरन_का



फ़ोन रख कर विधी सफ़ाई के छूटे हुए काम को ,फिर से पूरा करने में लग गयी थी ,परन्तु काकी के डाँटते हुए बोल अभी भी कानों में गूँज रहे थे ,"क्या बहू ! इतनी समय लगाती हो फ़ोन उठाने में ... कर क्या रही थी ... जानती तो हो कि इसी समय मैं इतनी फ़ुरसत पाती हूँ कि इत्मीनान से तुमसे बात कर सकूँ ,तब भी ... "


काम निपटा भी नहीं था कि फिर से फ़ोन की घण्टी ने बजते हुए अपने होने का अनुभव कराया । उधर से देवर जी बोल रहे थे , "भाभी कभी तो फ़ोन तुरन्त उठा लिया करो ... करती क्या रहती हो ?" आवाज़ की तुर्शी को अनदेखा करते हुए उसने बात की और फिर से शेष बचे कामों के गठ्ठर को खिसकाने का प्रयास करने में लगी ही थी कि दरवाज़े की घण्टी ,प्रशांत के आने की आहट देती बजने लगी ।


खुलते हुए दरवाज़े के सामने प्रशांत झल्लाया सा खड़ा था ,"क्या यार ! मैं रोज इसी समय तो आता हूँ ,फिर भी दरवाज़ा खोलने में इतना समय लगाती हो । अपना काम पहले खतम नहीं कर सकती हो क्या !"


थोड़ी देर में ही सब व्यवस्थित हो कर चाय नाश्ते का आनन्द ले रहे थे कि बेटा बोल पड़ा ,"वाह माँ ! आपने कतरनों से कितनी अच्छी डोर मैट बना दी है । सच आप तो बहुत बड़ी कलाकार हो ।"


सब समेट कर ,विधि पर्स ले बाहर निकलने को हुई तो सबकी प्रश्नभरी नज़रें उसकी तरफ ही टँगी हुई थीं । उसने स्मित बिखेरते हुए कहा ,"तुम लोग परेशान मत होओ ... मैं तो नया कपड़ा लेने जा रही हूँ ... अब कतरनों से मैं कुछ भी नहीं बनाऊँगी ... न तो कपड़े की और न ही समय की ।"

       ... निवेदिता श्रीवास्तव #निवी

गुरुवार, 4 मार्च 2021

बाल गीत : रेल शब्दों की



मुन्नू मुनिया करें मनमानी
सेब को बनायें जहाजरानी
चींटी आंटी को तीर पर बिठाया
बालक ने केले का बैट बनाया
शुरू देखो हो गया मैच
ब्लू बॉल बिल्ली ने की कैच
कप को कैंडल से सजाया
कार्पेट बिछा डॉल्फिन आयी
दरवाजे से डक औ डॉगी आये
ड्रम को डाइस सा लुढ़काया
अरे ... अरे ... आठों ईगल क्या छुपाएं
धत्त तेरे की लिफाफे में कान थे उनके
हाथी ने मेंढ़क को दिखलाया
मछली लगती कितनी प्यारी
फूल झण्डे सा लहराये
पाँच बकरियाँ चिल्लाईं
हरी घास हम न खायें
हमको तो अंगूर है भाये
लड़की गिटार संग गाए
गीत दिलों में बसता जाए
सोचो बच्चों घर बर्फ का बन जाये
आइसक्रीम कभी पिघल न पाए
उड़ी बाबा ... कीड़ों से भरा है जंगल
जीप भर के जोकर पतंगें रंग बिरंगी लाये
खुशियोंवाली चाभी राजा लाये
दिया ज्ञान का उजास भर जाये
माँ मग में दूध है लायीं
मन तो आम का पहाड़ मांगे भाई
नोट कहीं ये कर लो
तेल का न समुद्र बहाना
खाना सदा पौष्टिक ही खाना
तालाब में मोर प्यानो बजाए
क्यू बनाये कोयल कूक सुनाए
सद्प्रयास का इक रेनबो बनाएं
आसमान से समुद्र तक
जाले की सीढ़ी मकड़ी बनाये
सुबह करना दाँतों की सफाई
टीचर ने भी बात यही बताई
यूनिफॉर्म पहन तुम आओ
छाता जरूर संग ले जाना
वेजिटेबल सैण्डविच टिफिन में दूंगी
अरेरे वॉटर बॉटल की न वीणा बजाओ
छड़ी लिये परी खिड़की से आई
क्रिसमस ट्री जरा ज़ूम कर देखो
तोहफों में जाइलोफोन छुपा है
चलो अब ए से ज़ेड तक तुम सुनाओ
देखूँ क्या समझे इन शब्दों से भाई !
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

बुधवार, 3 मार्च 2021

लघुकथा ( शैली : संवाद ) : आभासी मिलन



एक - दूसरे को झाँक कर देखने का प्रयास करते और विफल होने पर बातें करते एक जोड़ी कान ...


सुनो !


हाँ ! बोलो न ... 


सुना है कि हम दोनों एक से ही हैं ...


हाँ ! यही तो मैंने भी सुना है 


ये बताओ तुमको कैसे लगा कि हम एक जैसे ही हैं ...


ये फ़ोन न जब मेरे पास आता है तब भी वो गालों को उतना ही छूता हुआ दिखाई देता है ,जितना तुम्हारे पास जाने पर 😅😅


 हा हा हा ... कह तो सही रहे हो 


अरे ! इतनी अच्छी बातें करते - करते उदास हो कर चुप क्यों हो गए हो 🤔


हमारे गुनाहों की सजा आँखों को मिलती है न ... सुनते हम हैं पर भीगती तो ये आँखें हैं ... 


हाँ ! यह बात भी सही है ... बहरहाल ये छोड़ो एक बात बताऊँ ... 


हम्म्म्म ... 


खुशी में दुलार करने के लिये ही हमको एक साथ पकड़ते हैं ,गुस्सा तो एक को ही पकड़ कर उतारते हैं 😏 😅😅


अच्छा ये बताओ हम क्या कभी एक - दूसरे को देख या छू पाएंगे ?


बिल्कुल ... पर आभासी रूप से 😅😅


आभासी 🤔


अरे जब चश्मे की दोनों कमानी की वरमाला हमारे गले झूलेगी और जो आँखें हमारी वजह से नम होती हैं न उनके सामने लेंस आ जायेगा न , बस उसी में आभासी रूप से हम मिल लेंगे 😊  .... निवेदिता 'निवी'