शुक्रवार, 13 मई 2022

पीड़ाओं से मुक्त कर !

ईश्वर हे जगदीश्वर

पीड़ाओं से मुक्त कर !


स्वस्ति दे आश्वस्ति दे

सुख का इक स्वर दे !


राह नई है चाह कई हैं

पीड़ा की राह सुरमई है !


जीवन मोहभरी माया है

लालसाओं ने भरमाया है !


बाधाओं की बगिया हो

या तूफ़ानों की रतिया हो !


आस यही विश्वास यही

हर पल की अरदास रही !


अन्तिम साँस पर मिलेगा तू

अपनी छाया में रखेगा तू ! 

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी 

#लखनऊ

बुधवार, 11 मई 2022

बिन्दु बिन्दु कर झरती जाये ...



बिन्दु बिन्दु कर झरती जाये 

यात्रा ये करती जाये


निरी अंधेरी इस गुफ़ा मे

सूर्य किरण सी दिखती है

कंकड़ पत्थर चट्टानों से 

राह नयी तू गढ़ती है

सर्पीली इस पगडण्डी से

प्रपात बनी उमगती है 

बिन्दु बिन्दु ... 


कन्दराओं से बहती निकल 

सूनि वीथि तुझे बुलाये

विकल विहग की आये पुकार

रोक रहे बाँहे फैलाये 

लिटा गोद में सिर सहलाती

थपकी दे लोरी गाये

बिन्दु बिन्दु  ...


गर्भ 'तेरे जब मैं आ पाई

प्यार सदा तुझ से पाया

अपनी सन्तति को जनम दिया

रूप तेरा मैंने पाया 

तुझसे जो मैं बन निकली थी 

गंगा सागर हम आये 

बिन्दु बिन्दु ....

.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

शनिवार, 7 मई 2022

लघुकथा : अधूरा परिवार

 अधूरा परिवार


म्लान मुख ,नत नयन सिसकती वीणा सी शुचि बिखरी हुई अपने कमरे में बैठी थी। आखिर वह भी कब तक परम्परावादी सोच की सड़न को अपनी जिह्वा से उगलते लोगों के सम्मुख चुप्पी साधे खड़ी रहती क्योंकि परम्पराओं को बहुओं का बोलना बहुत खलता है। शुचि के मामले में तो करेला और नीम चढ़ा वाली कहावत चरितार्थ होती थी। तीन-तीन बेटियों की माँ को साँस लेने देना ही बहुत बड़ा एहसान था।

आज तो मायके आयी हुई चचेरी ननद भी ,बेटे की माँ होने के गुमान में ,ताने देते परिजनों की टोली में सम्मिलित हो गई थी,"चाची! कब तक इंतजार करोगी ? तुम्हारी इस बहुरिया से वंश चलनेवाला पोता न मिलने का। मेरी मानो भाई की दूसरी शादी कर ही दो अब।"

शुचि से जब बिल्कुल ही सहन न हुआ तो वो वहाँ से अपने कमरे में भाग कर कटे पेड़ से ढ़ह गयी थी। तभी उसकी बड़ी बेटी सोनालिका माँ के अनवरत बहते हुए आँसुओं को पोछते-पोछते बाहर जा कर दादी के सामने खड़ी हो गयी,"दादी! फूफा जी की भी दूसरी शादी करवा दो। बुआ भी तो परिवार नहीं पूरा कर पा रही हैं, इनके भी तो सिर्फ़ दो बेटे ही हैं,बेटी तो है ही नहीं।"
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

रविवार, 1 मई 2022

ममता की दस्तक

अनाड़ी दुनियादारी में

उलझ रही थी जिम्मेदारी में

कुछ नए तो कुछ पुराने थे

रिश्तों की महकी क्यारी में !


उन धागों को सम्हाल रही थी

सपने नयनों में पाल रही थी

नन्हे कदमों ने दी जब दस्तक

ममता का झूला डाल रही थी !


बातें लगतीं कितनी अनजानी 

दिल करता अपनी सी मनमानी

हर पल जीवन बदल रहा था

लिख रहा था इक नई कहानी !

#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी'

#लखनऊ