रविवार, 29 मई 2016

जब तक तुम हो ......





आइना भी कितना दिलफरेब है 
ये तो बस चेहरा ही देखता है 
नज़रें मेरी तरस बरस कर
हर पल बस तुम्हे देखती हैं 
तुम दिख जाते हो न 
तभी तक ये आँखे देखती हैं 
पगला दिल धड़कना भूल जाता है 
निगाहों से जब तुम ओझल होते हो 
ये लब तो है मेरे पर देखो न 
हर पल बस नाम तुम्हारा ही लेते हैं 
सच है ये साँसे भी तभी आती हैं 
जब तुम कहीं आस पास होते है 
मनो या न मानो "बस यूँ ही" समझो 
जब तक तुम हो तभी तक मैं हूँ  .......... निवेदिता 

मंगलवार, 24 मई 2016

हाँ ! यहीं तो वो मुस्कान रहती थी ......



चाहती हूँ हर पल मुस्कराना 
न न ये कभी न सोचना 
मैं हो गयी हूँ बावली 
न ही ये सोच रही हूँ 
ये पल है अंतिम 
जी लूँ जी भर कर 
बस अचानक ही 
एक ख्याल बहक सा गया है 
क्या पता मेरी मुस्कराहट 
बन जाये कारण 
किसी और की मुस्कराने की 
काश ये स्वप्न सच हो जाये 
और मेरी मुस्कराहट ही 
मेरी पहचान बन जाये  
और चहलकदमी करते से 
कदम ठिठक कर थमें 
और कहें  ...... 
हाँ ! यहीं तो वो मुस्कान रहती थी ..... निवेदिता 

सोमवार, 16 मई 2016

तुझ जैसे लाडले हैं .......



तुझ जैसे  लाडले ,हैं  लाखों में एक 
मिलते  है जिसकी , नीयत हो नेक 

लड़खड़ाते डगमगाते चलना सिखाया 
थाम मेरी बाँहे  आगे बढ़ना सिखाया 

अंधियारे मेरे मन के झरोखे  सँवारे 
दिल में मेरे रौशन उम्मीदें जगायी 

पढ़ना सिखाया लिखना सिखाया 
पढ़ मेरे मन तुमने जीना सिखाया  ...... निवेदिता 


अबके बरस बरसात न बरसी ........




उफ़्फ़ अबके बरस बरसात न बरसी
इन आँखों से ये बारिश उधार ले लो
सूर्यमुखी से तुम न तपिश में झुलसो
मेरी दुआ के साये तले बसेरा कर लो
लड़खड़ाते हैं ये कदम तुम्हारे तो क्या
मेरे मन के विश्वास का सहारा ले लो
साँसे मेरी अब थमने को हैं तो क्या
अपनी यादों में ही जिंदगी मुझे दे दो .... निवेदिता

शनिवार, 14 मई 2016

छुम छन्नन्न छुम छन्नन्न ...........



कुछ लम्हे यूँ ही चुरा लूँ वक़्त से 
कभी साज़ से कभी आवाज़ से
कहीं रंगों सी रंगीन खिले चमक
कहीं बच्चों के खिलौनों सी हो
मासूम छुवन .......
तपती दुपहरी में अल्हण सी थिरक
झूमें लरजते बादलों की धड़कन
बादलों में खिले न खिले इंद्रधनुष
मन में कहीं कम न पड़े ये रसरंग
छुम छन्नन्न छुम छन्नन्न ..... निवेदिता

सोमवार, 2 मई 2016

ये रिश्ते ,ये जिंदगी ........



ये रिश्ते ,ये जिंदगी 
सच  .... 
कितने रंग दिखाते 
और हाँ !
कभी न कभी 
रंग भर के भी सिखाते हैं 
एक रिश्ता माँ पिता का 
पाया जन्म की 
पहली साँस से 
एक रिश्ता संतति का 
पाया उनके जन्म की 
पहली साँस से 
सच  ..... 
हर रिश्ते की 
अपनी सीमा है 
और अपनी ही गरिमा भी 
तब भी  .... 
कैसी तो चाहतें 
जन्म लेती हैं 
और 
तोड़ती भी है दम 
गलती कुछ तो 
अपनी इन चाहतों की भी होगी 
पहले रिश्ते को 
याद रखा 
एक आपदा संतुलन जैसे 
तो देखो न 
दूजे को माना 
अपने कभी आने वाले 
बुढ़ापे की लाठी  
शायद कुछ बातें सँवर जाती 
अधिक नहीं बस इतना सा कर पाते 
रिश्ते तो दोनों ही रहते 
बस अपनी इन दोनों ही 
चाहतों को बना लेते 
किस्मत उन 
अनमोल से रिश्तों की  ....... निवेदिता