आइना भी कितना दिलफरेब है
ये तो बस चेहरा ही देखता है
नज़रें मेरी तरस बरस कर
हर पल बस तुम्हे देखती हैं
तुम दिख जाते हो न
तभी तक ये आँखे देखती हैं
पगला दिल धड़कना भूल जाता है
निगाहों से जब तुम ओझल होते हो
ये लब तो है मेरे पर देखो न
हर पल बस नाम तुम्हारा ही लेते हैं
सच है ये साँसे भी तभी आती हैं
जब तुम कहीं आस पास होते है
मनो या न मानो "बस यूँ ही" समझो
जब तक तुम हो तभी तक मैं हूँ .......... निवेदिता
मानो या न मानो "बस यूँ ही" समझो
जवाब देंहटाएंजब तक तुम हो तभी तक मैं हूँ .......
बहुत सुन्दर ......... .प्यार होता ही है एक दूजे के लिए
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-05-2016) को "आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती" (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'