बुधवार, 28 अप्रैल 2021

ज़िन्दगी ....

 ज़िन्दगी ने कल यूँ ही चलते चलते रोकी थी मेरी राह 

आँखों में डाल आँखें पूछ  डाली थी मेरी चाह


ठिठके हुए कदमों से मैंने भी दुधारी शमशीर चलाई

क्या तुम्हें सुनाई नहीं देती किसी की बेबस मासूम कराह


ज़िंदगी कुछ ठिठक कर शर्मिंदा सी होकर मुस्कराई

सुनते सुनते सबकी कठपुतली बन गई हूँ रहती हूँ बेपरवाह


आज मैं भी कुछ अनसुलझे सवाल अपने ले कर हूँ आई 

दामन जब खुद का खींचा जाता तभी क्यों निकलती आह


गुनगुनाती कलियों की चहक से भरी रहती थी  अंगनाई

कैसे बदले हालात किसने कर दिया मन को इतना स्याह


हसरतों ने बरबस ही दी एक दुआ और ये आवाज लगाई

बेपरवाह ज़िंदगी इस 'निवी' को तुझसे मुहब्बत है बेपनाह।

                .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

मर्जी है आपकी ....

 #मर्जी_है_आपकी_समझ_न_भी_पाओ_तब_भी_सोच_जरूर_लेना


बिना मास्क लगाए घूमते लोगों से वायरस कहता है ... हम बने तुम बने मैग्नेट से ... 


उसके बाद 🤔

उसके बाद कुछ खास नहीं आकर्षण तो होना ही था ...


बस फिज़ां में गाने के बोल गूँजते हैं ...

चलो चलें मितवा ,इन सूनी गलियों में 

रोकता हूँ तेरी मैं साँसें 

कुछ न बोल ,आ पास आ ले

मिलने को हैं साथी ,रोकते हैं राहें

लपक के थाम ले ,उनकी भी बाहें ...


फिर कहता है ... "जिल्लेइलाही ! आपको हम कोई सजा होने ही नहीं देंगे ... न अपने छू पाएंगे ,न ही घर ले जाएंगे ... बस आपको पूरा ढ़क देंगे ... उसके बाद बस उस जहाँ की सैर पर चलेंगे हम ! " 


मर्जी है आपकी कि आप कहाँ रहना चाहते हैं 🙏 ... #निवी

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

ईरघाट ते बीरघाट

 सच अजीब है ये मानव मन कुछ भी कहो समझता ही नहीं ... पता नहीं क्या हो गया है ... इतनी तेज लू चल रही है कि सब तरफ़ पानी ही पानी दिख रहा है । सच्ची इतनी भयंकर लू में ग़ज़ब की बाढ़ आयी है भई 😏


जानते हैं जब इतनी परेशानियाँ घेरती हैं न तब मेरी आँखों में तीखी धूप की चमक भर जाती है ... उसी में वो क्या कहते हैं कि कोढ़ में खाज होना जैसे ,न जाने कौन दिलजला घण्टी की लाइट जला गया । बताओ भला जो भी देखेगा यही कहेगा न कि दिन - दुपहरी में लाइट जलाए बैठे हैं । घर के अंदर से इतनी जोर - जोर से फूंक रही थी पर लाइट बन्द ही नहीं हुई । सोचा कि चलो पंखा ही चला दूँ ,वो भी पूरी रफ़्तार से ... इधर सोचना था कि पैरों ने उठने देने का इंतजार भी नहीं किया और चल दिये हड़बड़ी में ... फिर ? फिर क्या 😏 वही हुआ जो नहीं होना था और एक पैर की चप्पल चल दी ईरघाट तो उसकी जोड़ीदार दूसरे पैर की पुलिसिया अंदाज़ में चली गयी बीरघाट ... अब क्या - क्या बताऊँ मैं बिचारी ... इस भगदड़ में मेरे पैरों की कुहनी जा टकराई ओस की बूंद से ... अब आप ये मत पूछिए कि इस तपती दुपहरी में ओस की बूंद कहाँ से आ गयी ! आप सिर्फ़ एक बात का जवाब दीजिये कि आप उस से पूछ कर कुछ करते या कहीं आते - जाते हैं ? नहीं न ... तो फिर वो क्यों आपको जवाब दे या बात माने !

हाँ ! तो ओस की बूंद से टकरा कर पैरों की कुहनी की कटोरी अपने बाकी के साथियों ,प्लेट चम्मच वगैरा के पास जाने की तैयारी में कमर कसने लगी ... पर हम भी हम ही ठहरे पकड़ लाये उस को और उसमें करेले की बेल लगा ही दी ... पूछिये ... पूछिये न कि बेल लगाई क्यों ? उससे भी बड़ी बात कि बेल लगाने की ज़ुर्रत कर भी ली तो करेला ही क्यों याद आया ? लौकी की क्यों नहीं लगाई ? जानती हूँ पूछे बिना आप रह ही नहीं सकते हैं ,क्योंकि बिना पूछे तो किडनी के सारे पत्थर दिमाग मे चले जाएंगे और आपकी आँखों को हिचकी लग जायेगी और पलकों की धड़कन रुकने का सब पाप हमारे मत्थे डाल दीजिएगा ... न भाई न ,अपने पाप आप अपने ही पास रखो ,हम तो स्वावलंबी होना सीख गए हैं और जितनी जरूरत होगी न उतने पाप हम खुद ही कमा लेंगे ।

चलिए हम बता ही देते हैं कि हमने ऐसा क्यों किया 🤔 अरे करेले की कड़वाहट उसमें भर जाएगी न तो हाथों के घुटने उस को मुँह नहीं लगाएंगे 😅😅 वैसे भी बड़ा मुश्किल होता है अपने ही हाथों के घुटने को अपने ही मुँह लगा पाना । सच्ची कर के देखो आप ... और अगर कर सको तो मुझे जरूर बताना ,मैं टिकट लगा कर सबको दिखाऊंगी ... और हाँ ! जो पैसे आएंगे अपन आधा - आधा बाँट लेंगे आखिर आइडिया मेरा और मेहनत आपकी जो है ।
    ... निवेेदिता श्रीवास्तव #निवी

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

लघुकथा : चढ़ता पारा

 "क्या हो गया ? लेटी क्यों हो ? अरे यार !सुबह का समय है ,ऑफिस जाना है मुझे ,अब जल्दी से बता भी दो ... ये क्या सुबह - सुबह मनहूसियत फैला रखी है ... जल्दी से चाय बना लाओ ", फ़ोन ,लैपटॉप ,पेपर सब को सामने रखते हुए अवी झुंझला रहा था ।


बिस्तर से उतरती हुई दिवी के लड़खड़ाने पर उसकी निग़ाह पड़ गयी ,"क्या हुआ ? अरे तुम्हारा तो बदन गर्म लग रहा है । बुखार देखा कितना है ? जाओ जल्दी से थरमामीटर ले आओ ,तुम्हारा टेम्परेचर देखूँ ... और सुनो थरमामीटर धो कर लाना ।"

"अच्छा ले आयी ... चलो अब ज़ुबान के नीचे रख लो ,मैं देखता हूँ ... हाँ ! हाँ ! इधर घूम के बैठो तभी तो देख पाऊंगा ,अब उतनी देर खड़ा रह कर क्या कर लूँगा । अरे देख तो रहा हूँ ,तुम बिल्कुल परेशान न होओ । देखो बढ़ रहा है ... 90 ... 91 ... 92 ... 93 ... 94 ... लाओ दो मुझको और क्या देखना 94.8 हो तो सामान्य होता है न ... क्या फ़ालतू में थरमामीटर को मुँह में रखे टेम्परेचर बढ़ने का इंतजार करना ... एकदम ठीक हो तुम । बस अब जल्दी से चाय दे कर टिफ़िन भी पैक कर दो । दिन में सो जाना ,नहीं तो कहोगी तुम्हारा ध्यान नहीं रखता मैं !"

दिवी ने हँसी रोकते हुए उसके हाथ से थरमामीटर वापस लेते हुए कहा ,"अभी पारा चढ़ रहा है ।"
#निवी

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

उदासी की दस्तक ....

 आज उदासी ने दी थी दस्तक

छू कर मेरी उंगलियाँ
बस इतना ही कहा
आओ तुमको दिखाती हूँ
अपना हर एक ठिकाना !

मेरी बेबस सी उदासी ने झाँका
उसकी उदास आँखों में
तुमको खोजने और कहीं क्यों जाऊँ
तुम तो बसी हो मेरे अंतर्मन में
सुनो ! पहले मुझको तो मुक्त करो
फिर चल दूँ साथ तुम्हारे !

उदासी ने बरसाई एक उदास मुस्कान
और देखा मुझको पलट कर
सुनो ! आओ मेरे साथ चलो
बेबसी के कुछ बोल सुनाती हूँ
आज तुमको अपने असली ठिकाने दिखाती हूँ !


तुमको अपनी ही उदासी दिखाई देती है
जानना चाहती हो क्यों !
तुमने न अपनी आँखों पर
ये जो ऐनक है चढ़ाई
इसमें सिर्फ और सिर्फ दिखाई देती है
तुमको अपनी ही उदासी और तन्हाई !

और सुनो न ऐ मेरी उदासी !
जबसे मैंने बदली है अपनी ऐनक
दूसरों की पीड़ा और उदासी ने भी
मेरे दिल को घेरा है और मैंने
उस ऊपरवाले को याद किया
अपनी छटपटाहट को भूल गयी
उदासी को बेघर करने की अहद उठाई
कहीं आम्र पल्लव में कोयल है कूकी !
#निवी

सोमवार, 5 अप्रैल 2021

मानवावतार


मानवावतार

सामान्यतया किसी भी धारणा की विवेचना करते समय हम आध्यात्मिक ,सामाजिक अथवा प्राकृतिक में से ही किसी भी अवधारणा का प्रश्रय ले कर ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाते हैं । इन समस्त धारणाओं के मूल में मनोवैज्ञानिक चिंतन स्वतः ही विद्यमान रहता है । मनोविज्ञान व्यक्ति का ,समाज का या प्रकृति का होता है ।

मानवावतावार को यदि प्राकृतिक अवधारणा के अनुसार मनन करें तो हम यही पाते हैं कि सृष्टि के क्रमिक विकास में ... जल से थल होते हुए आकाशीय विकास के परिवर्तनशील चक्र के सहायक के जैसे ही परमसत्ता ने अपने विभिन्न रूपों में क्रमिक अवतार लिया और अपने समय को एक व्यवस्था दी ।

सामाजिक अवधारणा के अनुसार भी जब परिस्थितियाँ सामान्य मानव के विवेक एवं नियंत्रण से परे हो जाती हैं ,तब परमसत्ता मानव के रूप में ही अवतरित होकर व्यवस्था के विचलन को नियंत्रित करती है ।

अध्यात्म भी यही कहता है कि जब दुष्प्रवृत्तियों के अत्याचार और अनाचार असह्य हो जाते हैं परम शक्ति पृथ्वी पर मानव रूप में आकर उन दुष्प्रवृत्तियों का दमन कर सृष्टि को सुरक्षित और संरक्षित करती है ।

इन सभी धारणाओं के मूल में मनोवैज्ञानिक आधार साथ ही चलता रहता है । ईश्वर को हम सर्वशक्तिमान मानते हैं । इसीलिए जब हम स्वयं को दुष्कर परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ पाते हैं तब हारे को हरिनाम जैसे सहायक व्यक्ति को परमसत्ता का मानवावतावार की संज्ञा दे देते हैं ।

सहायक प्रवृत्ति के इस रुप को भी हम मुख्यतः तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं । हममें ही कुछ व्यक्ति ऐसी संत प्रवृत्ति के होते हैं जो प्रत्येक परिस्थिति में समभाव से रहते हैं ,जैसे कितनी भी विपरीत परिस्थिति हो वह उनके लिये अनुकूल ही प्रतीत होती है । यह आदर्शवादिता के चरम की स्थिति होती है । दूसरी प्रकार की प्रवृत्ति में हमारा आदर्श जिनको हम मानवावतावार मानते हैं उन दुष्कर परिस्थितियों का सामना करते हुए सुधार करते हैं ,स्वयं की परिस्थितियों का भी और समष्टि का भी । तीसरे प्रकार वह आदर्शवादी आते हैं जो स्वयं का न सोच कर सिर्फ समाज के लिए ही प्रयासरत रहते हैं । इस को स्वार्थ से परमार्थ की यात्रा भी कह सकते हैं ।

मानवावतावार की अवधारणा के मूल में यही तत्व रचा - बसा रहता है कि जब आम जन विवश हो जाते हैं तब उनकी आत्मचेतना एवं प्रेरणा बन कर एक युग - पुरूष अवतरित होता है जो उनमें आत्मबल भरने के साथ ही समस्या समाधान भी कर देता है ।

मानवावतावार को यदि एक पंक्ति में परिभाषित करना हो तो कह सकते हैं कि एक सुनिश्चित प्रकृति के अनिश्चित अन्त के मध्य आयी उथल - पुथल को नियंत्रित करनेवाली परम - शक्ति और सबके मनोबल में नवजीवन भरनेवाली परम शक्ति को ही मानवावतावार माना गया है ,जिनका नाम कलचक्रानुसार भिन्न - भिन्न है ।
..... निवेदिता श्रीवास्तव '#निवी'