शनिवार, 23 नवंबर 2013

इखरे - बिखरे - निखरे आखर ( ४ )


    बड़ी अजीब होती हैं ये आती - जाते साँसे .....… जब आती हैं तब हँसा जातीं हैं और जब जाती हैं या कहूँ थमती हैं तब बहुत कुछ बिखेर जाती  हैं .....… जब एक नये जीवन की शुरुआत होती है तब माता - पिता अपनी एक-एक साँसों की एक सीढ़ी सी बना नये आने वाले सदस्य की राह निहारते हैं ....… न जाने कितने मासूम से सपनें और कितनी चाहतें उन पलकों तले आस भरती हैं .....… एक - एक लम्हा एक - एक कदम वो नन्ही उँगलियों को थामे अपेक्षाकृत दृढ़ हाथ कभी लम्बा तो कभी छोटा सफर तय करते हैं ....

    अचानक ही जैसे पूरी दुनिया ही बदल जाती है ..... कमजोर दिखती नन्ही उंगलियाँ दृढ़ होती जाती हैं और दृढ़ हाथों में क्रमश: शिथिलता पसरने लगती है .....… उम्र का वो पड़ाव वृद्ध होते माता - पिता के लिए बहुत कष्टप्रद होता है ...… एक अजीब सा खालीपन आ जाता है ....… लगता है कि करने को कुछ बचा ही नहीं .....… ये मन:स्थिति मन के साथ ही उनके शरीर को भी तोड़ देती है .....

    उम्र के इस पड़ाव पर उनको अपने हर रिश्ते , चाहे वो निकट के हों या दूर के , की चाह रहती है और कमी भी खलती है ..... अगर ईश्वर बहुत कृपालु होता है ,  तब उस समय उन का साथ देने को उनके बच्चे अपनी सुरक्षा का कवच बनाये उनके साथ रहते हैं ....

       समय एक बार फिर करवट लेता है और शारीरिक शिथिलता के साथ ही विभिन्न रोग भी प्रभावी होने लगते हैं ...... अब बच्चे अपनी एक - एक साँस की माला सी बना कर अपने माता-पिता को बचा लेना चाहते हैं  .....…  रोग को प्रभावी होते देख बच्चों की छटपटाहट ,उनकी व्याकुलता सबको बेबसी का एहसास करा जाती है .......

    बहुत पीड़ा देता है किसी अपने को ऐसी स्थिति में देखना , बस यही लगता है जैसे हम अपने अपनों की अंतिम साँस की राह देख रहें हो ..... अंतिम साँस के थमने पर भी कभी किसी के इंतज़ार का बहाना बनाते हैं तो कभी विभिन्न कर्मकांडों की तैयारी का बहाना बना कर  उस जाते  हुए रिश्ते को , अपने अस्तित्व के उस अंश के एहसास को कुछ और देर थामे रखना चाहते हैं ...... कभी किसी सामान का बहाना बना कर तो कभी कुछ - पूछते पूछते भूल जाने का आभास देते हुए उस स्थान पर आना , बस एक - एक निगाह उस अपने को अपनी यादों में ,अपनी निगाहों में सहेज लेना की लिप्सा ही तो रहती है .....

      जानती हूँ ये असम्भव है , तब भी यही कामना जगती है कि किसी को भी किसी अपने को ऐसे हर पल तिल - तिल कर जाते हुए न देखना पड़े ...... निवेदिता 

रविवार, 17 नवंबर 2013

तुम्हारी कुछ भी नहीं ......


ये चाहतें
बड़ी अजीब ही
नहीं
अजीब - अजीब सी
कभी भी
कहीं भी
यूँ ही सी
सरगोशियाँ करने
लग जाती हैं
अब देखो न
कैसी चाहत
उभर आयी है
चाहती हूँ
तुम्हारी कुछ भी
नहीं बनना ...
क्यों ?????
अरे ...
अभी तो
बहुत कुछ
और हाँ
बहुत सारे हैं
तुम्हारे पास
पर
जब कभी
ये सब कहीं
भटक जाएँ
ज़िंदगी की
उलझनों में
तब भी
कभी भी
तुमको
नहीं खलेगा
अकेलापन
तब
मैं हूंगी न
तुम्हारी
कुछ भी नहीं ...... निवेदिता 

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

साँसों के थमने पर ....



अजीब सा सफर है ये ज़िंदगी का भी ...... बस पहली सांस से आख़री सांस तक का ......  देखा जाए तो ये दूरी बड़ी छोटी सी है ..... बस पहली से आखरी सांस तक की , बड़ी ही नामालूम सी अजनबी की तरह गुजर जाती है बगैर कुछ बताये ..... बस दे जाती है कुछ चाहे और कुछ अनचाहे से रिश्तों के ताने - बाने .. ये ऐसे रिश्ते होते हैं जो एक  लम्हे को  जिंदगी  की सबसे  बड़ी  हकीकत  लगते हैं तो अगले ही लम्हे में सबसे बड़ी कड़वाहट से भरे झूठ ...... उन रिश्तों की चीख  पुकार को सुन कर लगता है ,जैसे उस जाने वाले के साथ ही उनकी भी ये आने वाली आख़री साँसे हैं ..... क्या सच में कभी ऐसा मुमकिन हो पाया है ..... हकीकत में तो शरीर के जाने के साथ ही, जिंदगी तुरंत ही शुरू हो जाती है ....... कभी घर की शुद्धि के नाम पर की जाने वाले साफ़ - सफ़ाई के नाम पर तो कभी इंतज़ामात के नाम पर ....... कभी यादगार और रवायतों का नाम दे कर लेने -  देने वाली सौगातों के नाम पर तो कभी व्यंजनों की एक लम्बी सी सूची के नाम पर .....

एक और भी अजीब सी हकीकत  आती है ... जिन कदमों में इतना साहस कभी नहीं होता की वो उस दहलीज़ की तरफ ख्यालों में भी आ सकें और हसरत से देखता है ,वही उस घर की हर दर -ओ - दीवार को अपनी हर सांस में भर लेता है और बाद में अपनी हसरत को अजीब सी हिकारत से देखता है ...

ताउम्र जिस शान शौकत से इंसान जीता है ,अपने तमाम शौक पूरे करता है ...... बस पलकों के बंद होते ही दूसरों का मोहताज़ हो जाता है ,जैसे लगता है की कब कोई आये और उसको अंतिम स्नान कराये ..... ताउम्र कितनी भी रंगीनियों में जीता रहा हो पर अब ....... उसकी तमाम नापसंदगी की बावजूद , कोरा बेरंग कफ़न पहनाया जाता है ....... बेशक उसको फूलों से एलर्जी रही हो पर फूलों की चादर ओढ़ाई ही जायेगी ........ और सबसे बड़ी बात जो बहुत बड़ी नाइंसाफी ( ? ) की है वो ये कि ये तमाम काम वही शख्स करता है जो उसको और जिसको वो सख्त नापसंद थे और कभीकभार तो उस सांस के आखरी रह जाने का कारण भी वही शख्स ही रहता है  ....

 सच बड़ी ही अजीब से होते हैं हालात सांसों के अटकने से लेकर थमने तक के ..... कई की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू करवाते हैं तो कई अनचाहे इंसानों के अनचाहे रहने पर सवालिया निशान भी लगाते हैं ....... आख़री सांस बड़ी ही बेरहम होती है ....... बहुतो के बड़े ही मासूम से लगते  अस्तित्व को झकझोर कर रख देती है और बहुतों की निगाह में बेबाकी से बेनक़ाब भी कर जाती है .............. निवेदिता

सोमवार, 4 नवंबर 2013

पता .....



पता .....
ये भी
एक अजीब ही
शै बनी रही
नाउम्मीदी में भी
फ़क्त इसको
तलाशते ही रहे
उम्र भर
पर ....
आख़री सांस
के आने पर भी
पता का भी
पता न मिला
कभी ......
अपने होने का
छलावा बन
एक नाम
तो कभी
एक नंबर के
होने का एहसास
जगा जाते हैं
पर .....
अगला ही लम्हा
जैसे खिड़की के
खुले काँच पर
चंद खरोंचें दे
बाहर की कंटीली
शाखों के होने का
सोया सा एहसास
खुली पलकों में
वीरानी की चमक
सा बरस जाता ......
                 -निवेदिता 

रविवार, 3 नवंबर 2013

आरती .....


अभी कुछ दिनों पहले ही हमारे सखी सम्मिलन में आरती करने की पूरी प्रक्रिया पता चली ,जो निम्नवत है ........   

हम जिस भी देवता की पूजा करते है हम पूजन के सम्पूर्ण होने के प्रतीक सवरूप उस देवता की आरती भी करते हैं ।  हर देवता के बीज मंत्र भी भिन्न होते हैं जिनके द्वारा हम उनकी पूजा करते हैं । ऐसी मान्यता है की बीज मंत्र को स्नान थाल ,घंटी और जल पात्र पर चंदन अथवा रोली से लिखना चाहिए । यदि बीज मंत्र न पता हो तो हम ॐ  बना लेते हैं । 

हर देवता की आरती करने की संख्या भी अलग होती है । विष्णु भगवान को बारह बार आरती घुमाई जाती है । सूर्य देव को सात बार ,दुर्गा जी की नौ बार ,शंकर भगवान की ग्यारह बार ,गणेश जी की चार बार आरती घुमाई जाती है । यदि  देवता की संख्या न पता हो तो सात बार भी कर दी जाती है । 

आरती करने की प्रक्रिया को भी चार भागों में बाँटा गया है । सबसे पहले चरणों की ,फिर नाभि की , तत्पश्चात मुख की और सबसे अंत में सम्पूर्ण विगृह की । आरती कर लेने के बाद उसको ठंडा भी किया जाता है ,इसके लिए शंख अथवा फूल में जल ले कर आरती के चारों तरफ घूमाया जाता है उसके बाद ही आरती ली जाती है !

आरती की थाली में सामन्यतया अक्षत ,फूल , धूप , दीप , अगरबत्ती , कर्पूर , फल ,मिष्ठान्न रखा जाता है !   -निवेदिता