सोमवार, 24 मई 2021

लघुकथा : कामवाला नाम

 बेबसी भटक रही थी और जीवन की लिप्सा उसकी आँखों में करवटें ले रही थी । अनजान हाथों ने उसकी भटकन को एक घर का आसरा दिया । पर ये क्या ... हर दिन एक नया पर्दा ... एक नया ही चेहरा ... बेबसी पीड़ा में बदल गयी और जीवन जीने की जिजिविषा किन्ही बेनाम अंधी गलियों में खो गयी ।


एक दिन संवेदना ने पीड़ा ने गिरहें खोलने की कोशिश की ,"सुनो तुम्हारा नाम क्या है ?"

झुकी हुई पलकों ने उठते हुए पूछ ही लिया ,"नाम से क्या करना ,कामवाला नाम बता देती हूँ शायद तुम्हारा काम चल जाये ... "

संवेदना ठिठक गयी ,"क्या मतलब ... ?"

विद्रूप हँस पड़ा ,"हाँ ! मेरा कामवाला नाम वेश्या है ।"

विस्फारित सी आँखें जैसे अपने कोटरों से निकल पड़ी हों ,"ऐसे खुद की मजबूरी और परिस्थितियों की उलझन में अपना ही तिरस्कार क्यों कर रही हो ? अच्छा जो तुम्हारे पास आते हैं उनका भी कोई ऐसा ही नाम होगा न ?"

पीड़ा सच का आईना थामे ठठा पड़ी ,"इस पुरुषवादी समाज में नाम सिर्फ हम औरतों का होता है ... बदनाम और गलत्त सिर्फ़ हम औरतें होती हैं ... पुरूष तो अपनी जरूरत पूरी करने आता है न ,उसका नाम नहीं मनोवृत्ति होती है ... सिर्फ़ मर्द की !"
#निवी

गुरुवार, 20 मई 2021

लघुकथा : वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग


शीर्षक : #वीडियो_कॉन्फ्रेंसिंग


एक जोड़ी लब बेहद ख़ामोशी से ,नम होती और नजरें चुराती पलकों को देख रहे थे । परेशान हो कर उन्होंने दिमाग को वीडियो कॉल कर ही दिया कि एक पंथ दो काम हो जाएंगे पलकों की समस्या का पता भी चल जाएगा और विचारों और वाणी (लबों) की जुगलबंदी भी फिर से सध जाएगी । सच्ची आजकल दिमाग से ज्यादा दिल से उसका बंधन सात जन्मों वाला लगने लगा है और ये मुआ दिल न धड़कन की रफ़्तार कम ज्यादा कर के डराता ही रहता है । 


वीडियो कॉल में स्वस्थ और संतुलित दिमाग को देख लबों ने सुकून की साँस भरी । एक दूसरे की कुशल - क्षेम पूछते ही उसने नमी से बोझिल होती पलकों का ज़िक्र किया और उसको भी कॉल में ऐड कर लिया ।


लब ,दिमाग और पलकों की मूक भाषा वाचाल हो चली थी । नमी का कारण पूछने पर पलकें बोल उठीं ,"हमारे चेहरे की ज़मीन पर दाढ़ी ,मूंछों और भौंहों के बाल इतने बढ़ते जा रहे हैं कि मेरी तरफ़ किसी की निगाहें ही नहीं पड़तीं । पहले सब अच्छा- ख़ासा वैक्सिंग और थ्रेडिंग से अपने दायरों में रहते थे ,अब लॉक डाउन में पार्लर बन्द होने से ,इंसानों के मन की तरह इन सबने भी अपने - अपने जंगल बना लिए हैं । मेरी तो कोई वक़त ही नहीं रही ।"


माहौल में छाए हुए भारीपन को दिमाग की खनकती हुई आवाज़ ने तोड़ा ,"परेशान मत होओ ,वक़त असली की होती है न कि समय - समय पर उगी खर - पतवार की । अब देखो न सभी विचारों ,भावनाओं और रिश्तों में भी पॉजिटिव होना चाहते हैं न परन्तु इस कोरोना पॉजिटिव होने से डरते हैं ... इसको भगाना चाहते हैं । जैसे ही पार्लर खुलेंगे ये बढ़ी हुई दाढ़ी - मूँछें गायब हो जाएंगे और सब गुनगुना उठेंगे ... मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले !"


लब भी खिलखिला उठे ,"सच यार तुमने तो प्रमाणित कर दिया कि दिमाग होता क्या है ! "


पलकों की नमी में भी उम्मीदों और दुआओं की पॉजिटिविटी चमकने लगी ।

     #निवी

रविवार, 16 मई 2021

झरता मन ...

 #झरता_मन ...


बिन्दु बिन्दु कर झरती जाये 

यात्रा ये करती जाये !


निरी अंधेरी इस गुफ़ा मे

सूर्य किरण सी दिखती है

कंकड़ पत्थर चट्टानों से 

राह नयी तू गढ़ती है

सर्पीली इस पगडण्डी से

प्रपात बनी उमगती है 

बिन्दु बिन्दु ... 


कन्दराओं से बहती निकल 

सूनी' वीथि तुझे बुलाये

विकल विहग की आये पुकार

रोक रहे बाँहे फैलाये 

लिटा गोद में सिर सहलाती

थपकी दे लोरी गाये

बिन्दु बिन्दु  ...


गर्भ 'तेरे जब मैं आ पाई

प्यार सदा तुझ से पाया

अपनी सन्तति को जनम दिया

रूप तेरा मैंने पाया 

तुझसे जो मैं बन निकली थी 

गंगा सागर हम आये 

बिन्दु बिन्दु ...  #निवी'

शुक्रवार, 14 मई 2021

गीत : आशा के जुगनू

 आशा के जुगनू बने ये नयन हैं

खोजे कहाँ छुप गए उसके मयन हैं !

विरह में जलाती यही वो अगन है
तारों भरा आँचल ओढ़े गगन है
दमकती है चपला सिहरन सी मन की
बहकती ही जाए सजनी सजन की
बनाये गलीचा वो सहस्त्र नयन है
आशा के जुगनू ...

बिजुरी सा दमकता टीका अनोखा
चाँद सी चमकती नथ ने है रोका
छनकती जाए लजीली ये पायल
मदन बाण ने किया है मुझे घायल
आ जाओ तो कर लूँ बातें अयन की
आशा के जुगनू ...

मन से तन तक यही रंग है छाया
सिमट कर चुनरिया में मन हर्षाया
बहकती बदली ,किरण बन तुम छाओ
महकते रंगो ,इंद्रधनुष खिलाओ
बन जाऊँ शय्या अपने मिलन की
आशा के जुगनू ...

निवेदिता श्रीवास्तव '#निवी'

अयन : साथ चलना
मयन : कामदेव

बुधवार, 12 मई 2021

लघुकथा : सपने

 


गुनगुनाते, मुस्कराते हुए दिवी चाय की ट्रे के साथ बालकनी में आ गयी । उसके चेहरे पर फैली सुरभित लुनाई को नजरों से पीता हुआ ,अवी बोल पड़ा ,"क्या बात है जानम ... आज के जैसी सुरमई सुबह तो इसके पहले कभी हुई ही नहीं ... इसका राज़ हमें भी बताओ न !"
दिवी मन ही मन अपनी खुशियों के मोदक का स्वाद लेती हुई बोली ,"जनाब ! जब अच्छी सी नींद आ जाये और उस हसीं नींद में प्यारा सा सपना आ जाये किसी प्यारे का ... हाँ जी तभी ऐसी सुबह होती है । "
"ऐसा क्या ... ",अवी भी हँस पड़ा ।
दिवी भी इठलाती हुई हँसने लगी ,"आप क्या जानो ये सपने और उनका सुरूर ... "
अवी उसके हाथों में चाय का प्याला थमाते हुए मंद स्मित के साथ बोला ,"सच कहा दिवी सपने में किसी प्रिय का आना स्वर्गिक अनुभूति देता है ... परन्तु किसी के सपनों में आना कोई बड़ी बात नहीं ।उसको वो सपना याद रह जाना और उसको हक़ीकत बनाने की जद्दोजहद के बाद ज़िन्दगी की चाय पीना उससे भी अलौकिक है ।"
दोनों की मिली हुई नज़रों में अनेकों जुगनू खिलखिलाने लगे थे ।
#निवी