बुधवार, 14 जून 2023

अथ नाम कथा

अथ नाम कथा

अपने नाम ,या कह लूँ कि व्यक्तिगत रूप से सिर्फ़ अपने लिये कभी सोचा ही नहीं।जीवन जब जिस राह ले गया सहज भाव से बहती चली गयी। 

अब जीवन के इस संध्याकाल में जब मिसिज़ श्रीवास्तव के स्थान पर स्वयं के लिए #निवी या #निवेदिता का सम्बोधन पाती हूँ तो सच में मन को एक अलग सा ही सुकून मिलता है और इन्हीं में से किसी लम्हे ने दस्तक दी थी कि यह नाम मुझे मिला कैसे!


चार भाइयों के बाद मेरा जन्म हुआ था।सबकी बेहद लाडली थी और जितने सदस्य उतने नाम पड़ते चले गये,परन्तु उन सब के दिये गए नामों पर भारी पड़ गया ,घर में काम करनेवाली सहायिका ,हम सब की कक्को का दिया नाम। उन्होंने बड़े अधिकार से सबको हड़का लिया था,"हमार बहिनी क ई का नाम रखत हईं आप सब। हमार परी अइसन बिटियारानी के सब लोग बेबी कह।" इस प्रकार पहला नाम 'बेबी' रखा गया 😄 


इस बेबी नाम के साथ हम दुनिया के मैदान में तो आ नहीं सकते थे, तो फिर से एक नाम की तलाश शुरू हुई।सभी अपनी पसन्द के नामों के साथ फिर से आमने-सामने थे। 


अबकी बार सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि सभी लोग चिट पर अपनी पसन्द के नाम लिख कर मेरे सामने रख दें और मैं जो भी चिट उठा लूंगी वही नाम रखा जायेगा।


दीन-दुनिया से बेखबर ,सात-आठ महीने की बच्ची के सामने बहुत सारी चिट आ गयी, सभी अपनी तरफ से होशियारी दिखा रहे थे कि उनकी चिट ऊपर रहे और उठा ली जाये ... पर इस बच्ची का क्या करते उसने करवट बदली और ढ़ेरी के नीचे से 'निवेदिता' नाम की चिट निकाल ली। पूरे होश ओ हवास में, इस बिन्दु पर मैं ज़िम्मेदारी लेती हूँ कि अपना निवेदिता नाम मैंने खुद रखा 😊 


स्कूल/ कॉलेज में भी निवी, दिवी,नीतू,तिन्नी जैसे कई नामों से पुकारा सबने।जन्म के परिवेश ने सरनेम 'वर्मा' दिया जिसको विवाह ने बदल कर 'श्रीवास्तव' कर दिया।


नाम बदलने का सिलसिला यहीं नहीं थमा।लेखन तो बहुत पहले से ही करती थी परन्तु जब मंचो की तरफ़ रुख किया, तब उपनाम रखने की जरूरत अनुभव हुई। मेरी मेंटोर, जिन्होंने मुझको मंच का रास्ता दिखाया, उनका भी नाम 'निवेदिता श्रीवास्तव' ही था। एक साथ रहने पर हम तो मजे लेते पर एक से नाम सबको कन्फ्यूज भी खूब करते थे। इस उलझन से बचने के लिये मेरी वरिष्ठ ने अपने नाम के साथ 'श्री' जोड़ा और मैंने 'निवी' ।


जब थोड़ी समझ आयी,तब इस नाम की महान विभूतियों के बारे में भी जाना और एक अनकही सी ज़िम्मेदारी आ गयी कि बेशक मैं उनके जैसी कुछ विशिष्ट न बन पाऊँ पर जितना सम्भव होगा उतना सभो में सकारात्मक भाव भरूँगी और कभी भी किसी को धोखा नहीं दूँगी।

 निवेदिता श्रीवास्तव निवी 

लखनऊ

शनिवार, 3 जून 2023

विदाई : एक ख़याल भटका सा

 बिदाई शब्द से ही दो लम्हे अनायास ही दस्तक देने लगते हैं ... एक तो बेटी की विदाई और दूसरी इस दुनिया से, परन्तु जब चित्त सुस्थिर हो कर मनन करता है तब तो न जाने कितने पल याद आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी व्यक्ति, सम्बंध अथवा स्थान से स्वयं को अलग होते पाते हैं। कभी माँ के गर्भ में आने से पहले पूर्व जन्म के सम्बन्धियों से विदाई तो कभी हमसे भी अधिक हमको जाननेवाली माँ के गर्भ से, तो कभी घर से निकल कर माता पिता की उँगली थामे स्कूल को जाते हुए हम होते हैं वहीं कभी ज़िन्दगी की आँखों में आँखें डालने की तैयारी में माता पिता के थामे रहने वाले हाथों से पकड़ की विदाई ... घर, शहर, पितृ सदन से एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय के लिए अथवा जीवन से ऐसे न जाने कितने पल होते हैं विदाई के, जो हम को एक से विलग कर के दूसरे स्थान पर ले जाते हैं।


विदा के पल बेहद पीड़ा भरे भी होते हैं, तब भी कभी-कभी मन बावरा हो कर इसी की चाहत करने लगता है। माया मोह के बन्धन में जकड़ा हुआ मन जैसे ही दुनियादारी की तन्द्रा से जाग्रत होता है, इन नश्वर बन्धनों के सत्य के निकट पहुँचने लगता है, वह इन सब से विदा होने की चाहत में जल बिन मीन सा छटपटा उठता है और चाहता है इन सब से विदाई!

विदाई के बारे में मेरी एक बहुत ही छोटी सी चाहत है कि इस दुनिया से विदा होते समय ही, सभी के दिल दिमाग से भी मेरी यादों की विदाई हो जाये ... यहाँ के नाते, रिश्ते, कर्म सब से मुक्त हो जाऊँ। आत्मा को मोक्ष मिलेगा या नहीं, यह नहीं जानती बस इतनी सी चाहत है कि यहाँ का हिसाब किताब यहीं निबट जाए और यदि नया जन्म होता है तो कोरी स्लेट सा हो ... किसी के, किसी कर्म की उधारी चुकाने / वसूलने के लिए नहीं।

भोलेनाथ! मेरी इस चाहत को पूरा करने की जिम्मेदारी तुम्हारी🥰
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ