शुक्रवार, 4 मार्च 2022

लघुकथा : हौसलों की उड़ान

 हौसलों की उड़ान


अलसायी सी सुबह में आस भरती आवाज़ ने ,मुँदी पलकों से कहा ,"चाय पियोगी ?"


"छोड़ो ... "


"क्यों ... क्या हुआ ?"


"अब कौन चाय पीने के लिए इतने सरंजाम सजाए ",और वह बेबसी से अपने पैरों पर चढ़े प्लास्टर को देखने लगी ।


"हाँ ! ये भी सही कहा तुमने ",नेह की सूर्य किरण मुस्कुरा उठी ,"वैसे भी हम चाय कहाँ पीते हैं ,हम तो एक दूसरे के साथ ज़िन्दगी की यादें पीते हैं । चलो वही पीते हैं ",उसने स्लिपडिस्क के दर्द से कराहती पीठ पर एक हाथ रखते हुए दूसरा हाथ छड़ी की मूठ पर रखा ।


प्लास्टर में बन्द बेबसी को पीछे धकेलती हुई वह भी चन्द्रकिरण सी शीतल हो गई और संकेतिका दिखाती खिलखिला उठी ,"याद रखना कि अब मुझे न तो ब्लैक कॉफी पीनी है और न ही कड़वी - कसैली चाय ... मुझको तो तुम बस अदरख - इलायची सी सौंधी - सौंधी ख़ुशबूदार चाय पिलाना ।"


सिरहाने रखी एलबम से खिलखिलाती तस्वीरों ने उनके हाथों में हौसलों की उड़ान से भर दिया । 

#निवेदिता_निवी 

  लखनऊ

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