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बिलख - बिलख वसुधा है रोती
समझ नहीं कोई पाया
हर्ष - विषाद उर में बस जाये
प्रेम विशाल दिखा जाता ,
तब अंतर्मन संवाद करे
नयन जलद सा खिल भाता ,
वीणा यादों की गान करे
गीत पुरातन तब गाया ,
बिलख - बिलख वसुधा है रोती
समझ नहीं कोई पाया !
*
उम्मीदों की गगरी छलकी
समय विभीषण आ जाये ,
पर्वत - पर्वत घूम रहा था
छुपा अमिय रहा बताये ,
भूकम्पी सी आहट दे कर
झटका घर को गिरा गया ,
बिलख - बिलख वसुधा रोती
समझ नहीं कोई पाया !
*
नयनों से जब जब नीर बहे
आसमान क्रंदन भरता ,
आस जगा साहस यूँ भर कर
दायित्व वहन है करता ,
कर्तव्यों की बलिवेदी पर
हर पल की वह मौत जिया ,
बिलख - बिलख वसुधा है रोती
समझ नहीं कोई पाया !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-08-2020) को "मन्दिर का निर्माण" (चर्चा अंक-3781) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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वाह बेहतरीन नवगीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत सरस भावपूर्ण।
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