रविवार, 10 अप्रैल 2022

अलबेला सपना !

सजा रही अलबेला सपना

मन आशा से दमक रहा

*
राह बहुत हमने थी देखी
आन विराजो रघुनन्दन
फूल चमेली बेला भाये
लाये अगरु धूप चन्दन
मंगल बेला अब है आई
खुश हो घर गमक रहा है !
*
रात अमावस की काली थी
निशि शशि ने आस सजाई
राह प्रकाशित करनी चाही
चूनर तारों भर लाई
सुमन मेघ बरसाने आये
बन साक्षी अब फलक रहा !
*
कन्धे पर हैं धनुष सजाये
ओढ़ रखा है पीताम्बर
सुन्दर छवि है जग भरमाये
नाच रहे धरती अम्बर
आज महोत्सव अवध मनाये
दीवाली सा चमक रहा !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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