शनिवार, 10 दिसंबर 2022

समस्या और समाधान

 समस्या और समाधान


समस्या और उनका समाधान,अक्सर ही एक-दूसरे के साथ गलबहियाँ डाले हुए ही चलते हैं, परन्तु जब अचानक से ही कोई समस्या सामने आ जाती है, तब मस्तिष्क एक पल को शिथिल पड़ जाता है और उसी शिथिल हुए पल की कमजोरी का लाभ उठा कर समस्या अपना विकराल रूप दिखा कर,अपनी समस्त नकारात्मकता के साथ मन मस्तिष्क पर प्रभावी हो जाती है। इस बात की रोचकता यही है कि वह समस्या जीवन-मरण के प्रश्न जैसी नहीं होती अपितु बहुत छोटी सी भी हो सकती है,यथा हमको कहीं जाना हो और कैब या ऑटो न मिलने पर एक बदहवासी सी तारी हो जाती जबकि थोड़ा आगे चलने पर ही हमको कोई साधन मिल सकता है या उतनी दूरी तक पैदल ही चलने से हम गंतव्य के कुछ पास आ जाते हैं।

यह पूर्णतया सत्य है कि जीवन है तो समस्याएँ तो आगे-पीछे से उपस्थित हो कर साँसों का संतुलन बिगाड़ने के लिए सतत प्रयत्नशील रहती हैं क्योंकि यही उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। पानी के प्रवाह की प्रवृत्ति ढ़लान की तरफ़ ही गतिमान होना ही है, तब भी उस की प्रवृत्ति की विकरालता पर अंकुश लगा कर हम बाँध बना कर विभिन्न सकारात्मक कार्यों में उसकी ऊर्जा को समाहित कर देते हैं।

समस्याओं का समाधान तुरन्त करना है अथवा बाद में, यह तो उसकी प्रकृति एवं हमारी प्राथमिकता पर निर्भर करता है। बस याद रखने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि कभी भी समस्या को अनदेखा नहीं छोड़ना चाहिए, उनका समाधान / निराकरण अवश्य करना चाहिए।

मैं भी एक सामान्य व्यक्ति ही हूँ और जीवन में नित नई समस्याओं का सामना करती हूँ। समस्याओं के समाधान का मेरा तरीका बस इतना सा रहता है कि मैं पहले उस समस्या का सामना करती हूँ और उसके थोड़ा सम्हलने पर उसके कारण को समझ कर, उस समस्या की विकरालता की गति को अवरुद्ध करने का प्रयास करती हूँ। शेष चुनौतियों को छोड़ कर सिर्फ़ एक ही चुनौती / समस्या का ज़िक्र करना चाहूँगी जो रूप बदल-बदल कर सदैव साथ रही है। अपने काम के शुरू से ही अमित जी डिस्ट्रीब्यूशन में रहे हैं जो सीधे आम जन से जुड़ कर उनके सामने ही रखता है। आमजन को समस्या के कारण से मतलब नहीं रहता कि ट्रांसफॉर्मर खराब हो गया है कि तार टूट गया है, उनको तो निर्बाध रूप से विद्युत आपूर्ति चाहिए। ऑफिस में अधिकारियों के घेराव एवं नारेबाज़ी से मन नहीं भरता था तो परिवार को धमकाने जुलूस की शक्ल में आ जाते थे या फ़ोन करते रहते। शेष घटनाओं को एक बार भूलने का प्रयास भी करती हूँ, तब भी एक घटना नहीं भूलती ... एक पोस्टिंग पर वहाँ के नेतागिरी चमकाने के लिए किसी भी हद तक निरंकुश होने वाले सज्जन (?) के कई बार फ़ोन आ जाते थे या फिर जुलूस जैसी भीड़ के साथ स्वयं। उस समय  मेरा जवाब रहता कि सर से बात कीजिये। एक बार बच्चों की तबियत गड़बड़ थी और फिर फ़ोन आया, अपना रौब बनाये रखने के लिए यह सारी फ़ोन कॉल्स वो अपने समर्थकों के सामने स्पीकर पर करते थे। इस बार मेरा धैर्य भी जवाब दे गया और मैंने कहा,"प्रशासन में काम और आपके प्रश्नों प्रति उत्तरदायी सर हैं मैं नहीं। अब यदि आपको मुझसे ही जवाब चाहिए तो मेरी भी नौकरी सर की सेक्रेटरी के रूप में लगवा दीजिये ... और जहाँ तक बात है आपकी धमकियों की तो महोदय अमर हो कर कोई भी नहीं आया है। जब जिस पल भोलेनाथ चाहेंगे साँसे बन्द हो जाएंगी और जब तक वो नहीं चाहेंगे कोई किसी का बाल भी बाँका नहीं कर सकता है। स्पीकर पर ही आप बात करते हैं न तो सब ने मेरा भी जवाब सुन लिया होगा और अब आप यह ध्यान रखियेगा कि यदि मेरे परिवार को खरोंच भी आई तो सबसे पहले शक़ की सुई आपकी तरफ़ ही जाएगी। अपनी सुरक्षा के लिए हम सब की सुरक्षा की भी दुआ मांगियेगा।" मेरे इस जवाब के बाद वो एकदम शान्त हो गया और हमारे बाद जानेवाले अधिकारियों के भी घर कभी फ़ोन कर के अथवा जुलूस ले कर धमकाने नहीं पहुँचा।

किसी भी प्रकार की समस्या आने पर यदि पहले ही हम पैनिक हो जाएं और यही सोचते रहें कि वह समस्या आयी क्यों या कैसे आयी या फिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है ,तब तो उसको अपने दावानल में सम्पूर्ण स्वाहा करने का और भी अधिक अवसर मिल जाएगा।

समस्या बड़ी हो या छोटी,उसके अंकुरण के साथ ही उसका समाधान भी साँस लेने लगता है, आवश्यकता मात्र इतनी ही होती है कि उसको सकारात्मकता की धूप-पानी रूपी ऊर्जा पहुँचा कर समस्या रूपी आवरण को हटा कर समाधान को पल्लवित होने का अवसर दें।
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी
#लखनऊ

1 टिप्पणी:

  1. सटीक आलेख और प्रेरक संस्मरण। इस बात से सहमत कि समस्या के उत्पन्न होते ही उसके निदान के लिए कार्य करने लगें तो वह ज्यादा दिक्कत नहीं देती है। आभार।

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