"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
bahut achha likha hai aapne....
Bahut sunder
बहुत सुन्दर कविता सच जिन्दगी मे पता नही क्या क्या सहन करना पडता है
"..हथौड़े की ठोकर सहती जाती बेचारी ज़िंदगी"यही तो यथार्थ है.सादर
कहीं टिके रहने के लिये जड़वत होती और कील के नीचे ठोकी जाती जिन्दगी।
आप सबका आभार । प्रवीण भाई , आपने तो मेरी कविता पूरी कर दी ।शुक्रिया ।
bahut achha likha hai aapne....
जवाब देंहटाएंBahut sunder
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसच जिन्दगी मे पता नही क्या क्या सहन करना पडता है
"..हथौड़े की ठोकर
जवाब देंहटाएंसहती जाती बेचारी ज़िंदगी"
यही तो यथार्थ है.
सादर
कहीं टिके रहने के लिये जड़वत होती और कील के नीचे ठोकी जाती जिन्दगी।
जवाब देंहटाएंआप सबका आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रवीण भाई , आपने तो मेरी कविता पूरी कर दी ।शुक्रिया ।