"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
सच को कविता में ढाला है आपने.सादर
कभी कभी झंझावात निकलने के बाद कई रास्ते और दिखने लगते हैं।
जीवन की सच्चाई।
यथार्थ की भावभूमि पर सुन्दर रचना
quite realistic !
यथार्थ चित्रण.बढ़िया रचना.
जीवन की सच्चाई......बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!
भाव पूर्ण रचना |बधाई |आशा
यथार्थ चित्रण.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|
आप सबका आभार !!!!@प्रवीण जी ,रास्ते दिख जायें ,तब वो झंझावात नहीं होते । आभार !
kya baat hai. gulzar sahab ki ek gazal yaad aa gai.hath chhoote bhi to rishte nahi chhoda karte.
bahut sach kaha aapne bahut badhiya likhti hai aap zindagi ki sachaai ko ...shukriya
सच को कविता में ढाला है आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
कभी कभी झंझावात निकलने के बाद कई रास्ते और दिखने लगते हैं।
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई।
जवाब देंहटाएंयथार्थ की भावभूमि पर सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंquite realistic !
जवाब देंहटाएंयथार्थ चित्रण.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना.
जीवन की सच्चाई......बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण रचना |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
यथार्थ चित्रण.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआप सबका आभार !!!!
जवाब देंहटाएं@प्रवीण जी ,रास्ते दिख जायें ,तब वो झंझावात नहीं होते । आभार !
kya baat hai. gulzar sahab ki ek gazal yaad aa gai.hath chhoote bhi to rishte nahi chhoda karte.
जवाब देंहटाएंbahut sach kaha aapne bahut badhiya likhti hai aap zindagi ki sachaai ko ...shukriya
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