सोमवार, 14 मार्च 2011

" सुनो न कान्हा .............."

 क्या बनाओगे प्रभु !
कान्हा की बंसरी ,
या मीरा का इकतारा !
बंसरी सी संवरी (तो) 
सांसों में जा बसूंगी ,
बन गयी इकतारा (तो)
ह्रदय में छुप जाऊंगी ,
चलो बना लो 
वैजयंती-माल ही ,
तुम्हारे कंठ से 
शोभित हो जाऊंगी ,
सुनो न ,कान्हा 
कुछ मेरी तो सुन लो 
रचा  लो अपने पाँव 
बना लो महावर ,
कंकड़-कांटे -धूल
कुछ भी न तुम्हे 
कभी चुभने दूंगी , 
बस ना बनाना 
अपना सुदर्शन-चक्र ,
वध किसी का भी ना 
कभी कर पाऊँगी ,
शत्रु हैं , विरोधी हैं 
तब भी नाम तो तेरा ही 
जपते जाते हैं !
        निवेदिता

8 टिप्‍पणियां:

  1. कान्हा के साथ साथ जीवन का दर्शन, बहुत ही सन्दर।

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  2. बहुत ही खूबसूरत भाव लिए है ये...आप किसी ना किसी रूप में कान्हा से जुड़े रहना चाहते हैं....

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  3. शत्रु हैं , विरोधी हैं
    तब भी नाम तो तेरा ही
    जपते जाते हैं !

    Yahi duniya ka saar hai

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  4. बहुत सुंदर स्तुति और जीवन दर्शन निवेदिताजी..... बस किसी भी रूप में सही माधव स्थान दो अपने आस पास ... कितने खूबसूरत भाव....

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  5. प्रवीण जी ,राजेश जी ,दीपक जी ,यशवन्त जी ,मोनिका जी ,सन्जय जी आप सब का धन्यवाद .............

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