कान्हा की बंसरी ,
या मीरा का इकतारा !
बंसरी सी संवरी (तो)
सांसों में जा बसूंगी ,
बन गयी इकतारा (तो)
ह्रदय में छुप जाऊंगी ,
चलो बना लो
वैजयंती-माल ही ,
तुम्हारे कंठ से
शोभित हो जाऊंगी ,
सुनो न ,कान्हा
कुछ मेरी तो सुन लो
रचा लो अपने पाँव
बना लो महावर ,
कंकड़-कांटे -धूल
कुछ भी न तुम्हे
कभी चुभने दूंगी ,
बस ना बनाना
अपना सुदर्शन-चक्र ,
वध किसी का भी ना
कभी कर पाऊँगी ,
शत्रु हैं , विरोधी हैं
तब भी नाम तो तेरा ही
जपते जाते हैं !
निवेदिता
कान्हा के साथ साथ जीवन का दर्शन, बहुत ही सन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत भाव लिए है ये...आप किसी ना किसी रूप में कान्हा से जुड़े रहना चाहते हैं....
जवाब देंहटाएंशत्रु हैं , विरोधी हैं
जवाब देंहटाएंतब भी नाम तो तेरा ही
जपते जाते हैं !
Yahi duniya ka saar hai
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर स्तुति और जीवन दर्शन निवेदिताजी..... बस किसी भी रूप में सही माधव स्थान दो अपने आस पास ... कितने खूबसूरत भाव....
जवाब देंहटाएंbehtreen.....
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी ,राजेश जी ,दीपक जी ,यशवन्त जी ,मोनिका जी ,सन्जय जी आप सब का धन्यवाद .............
जवाब देंहटाएंAtyant manohaari.....
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