गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

सोच ?

     आज अभी थोड़ी पहले देर एक बच्ची,मेरी नन्ही सी मित्र ,की उत्सुकता उजागर हुई जो कि उसमें मेरी ही एक पोस्ट (डर .....क्यों ......)को पढ़  कर जगी है | हम अकसर अपनों की शुभकामना करते हुए उनको  कुछ  गलत 
भी बोल जाते हैं ,जैसे  बच्चे को गिराने से बचाने के लिए बोल जाते हैं  कि अभी गिरोगे  जबकि हमारी कामना  उसको बचाने  की  ही  रहती है |  इस
सोच को नकारात्मक अथवा ऋणात्मक नहीं कह सकते हैं | ये एक  अपनी 
शुभेच्छु सोच है | हमारे  भाव या सोच हमारे शब्द नहीं होते , वो  तो  हमारे 
अंतरमन के विचार होते हैं | 
         हम माने अथवा न माने,हम सब ही सामाजिकता,अवसर या रिश्तों 
के मकड़जाल में फंस कर ,मन के भावों से इतर भी कभी-कभी बोलने को 
मजबूर हो जाते हैं | पर तब भी हमारा मन अपने विचारों की तरंगे प्रवाहित 
करता रहता है जो कि वस्तुत : सच होती हैं , हमारे  अपने मन की आवाज़ होती हैं |
           इस प्रकार की  नकारात्मक बातों में  हमारी नकारात्मक सोच नहीं ,
शुभेच्छा ही रची-बसी रहती है ,जो हमारे अपने प्रिय-जन की मंगल-कामना 
ही रहती है और इसको कोई भी कभी भी गलत नहीं मानेगा |

5 टिप्‍पणियां:

  1. "इस प्रकार की नकारात्मक बातों में हमारी नकारात्मक सोच नहीं ,
    शुभेच्छा ही रची-बसी रहती है"

    आप से पूर्णतः सहमत.

    सादर

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  2. बहुत सही कहा है कि इस इस तरह की नकारात्मक बातों में हमारी शुभेक्षा ही बसी होती है..हम जिसे प्यार करते हैं उसी को कुछ ऐसा काम करने से रोकते हैं जिस से हम सोचते हैं कि उनका अहित हो सकता है.ऐसा करना कभी नकारात्मक सोच नहीं हो सकती.

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  3. प्यार में किसी को मना करना भी नकारात्मकता नहीं है।

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  4. त सही लिखा है आपकी संवेदनशीलता झलकती है... शुभकामनायें

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