गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

"माखनचोर "

         कान्हा की कई लीलाओं के बारे में हम अकसर सोचते हैं | कभी उन की
बाल -लीला , तो कभी रास लीला | कभी  उनका  निर्वाण , तो  कभी  उनका 
दिया गीता का ज्ञान |
     आज हम उनकी बाल -लीला को ही समझने का प्रयास करते हैं | कान्हा 
का बनाया हुआ गोप -गोपियों का वृंद हमारे आज के समवाद या समाजवाद 
की आधारशिला ही था | हर वर्ग के बच्चे उनकी मंडली में शामिल थे बिना किसी भी प्रकार के भेद - भाव के | यह वर्गीकरण आर्थिक भी नहीं था और 
न ही सामाजिक | सबसे महत्वपूर्ण बात है की बालक अथवा बालिका का भी 
नहीं था |इस प्रकार अगर सही अर्थों में देखा जाए तो हमारे प्यारे से कान्हा 
सबसे पहले समाजवादी हैं , जिन्होंने एक समभावी समाज का स्वप्न देखा 
और कुछ अर्थों में कार्यान्वित भी किया |
      कान्हा को हम माखनचोर भी कहते हैं | उनके माखन चुराने की क्रिया 
का तो बहुत ही मनभावन और वात्सल्य से परिपूर्ण वर्णन कई कवियों ने 
किया है | हम  कान्हा की इस माखनचोरी को एक दूसरे नज़रिये से देखने की कोशिश करते हैं | उस समय कंस और उस जैसे दूसरे अत्याचारी राजा 
प्रजा को प्रताड़ित करने के नित नए  तरीके  अपनाते  थे | कभी फसल  तो कभी उनके पशुओं पर दखल जमाते थे |इन परिस्थितियों से परेशान लोग 
बच्चों के  खान  - पान  का  ध्यान नहीं रख पाते थे | कान्हा ने इसका बहुत अच्छा हल खोज निकाला | खेल - खेल में  ही  कान्हा दूध -  दही - माखन 
चुराते थे और उनकी गोप  और  गोपियों की सेना उसका सेवन करती थी |
अपनी माँ और अन्य सब बड़ों की डांट को अपनी कृष्ण -लीला से अनसुना कर  जाते  थे  और  कोई  चंचल  सा , नटखट  सा बहाना कर जाते थे और अपने साथियों  को पुष्ट  बनाने का एक सूझ - बूझ  भरा कृष्ण - प्रयत्न कर जाते थे | 
          देखा आपने कान्हा की हर लीला का एक अर्थ  तो उनके जैसा ही है
एकदम नटखट और दूसरा अर्थ उनके गीता के ज्ञान जैसा है जो थोड़ा सा 
विचार करने पर समझ आ जाता है | इसलिए अगली बार हम सबके प्यारे  
माखनचोर को और भी दुलार के साथ याद कीजिएगा | 


7 टिप्‍पणियां:

  1. .

    कान्हा तोरी -बा ..आ ...जे- पैजनिया....

    निवेदिता जी , बहुत ही खुबसूरत आलेख । कान्हा तो मेरे मन मंदिर में बसे हैं । मेरे संघर्षपूर्ण जीवन में मेरे सारथि हैं।

    .

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  2. wah nivedita ji aapne to kamal hi kar diya
    Kanha ke liye is tarah ki soch ka lekh pahli baar padha hai
    Is lekh ke liye Shubhkamnaye swikare
    Agle lekh ka intazar rahega

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  3. मुझे तो विशुद्ध वात्सल्य रस दिखता है, कृष्ण के बचपन में।

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