शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

आओ सहेज लें.....

आओ सहेज लें उन लम्हों को 
सरकते जाते हैं रेत की तरह 
रंग छलकाते रंगीनी बढाते 
वसंत की खुशबू की तरह 
फगुनहट की आस दिलाते
सावन की रसधार 
दीपों की कतार 
सारे पर्व - त्यौहार 
जीवन जीना सिखलाते 
नन्हे तोतले बोल 
बतलाते सब सार 
जतलाते बार-बार 
न कुछ बदला 
न ही कुछ छूटा 
नहीं कहीं पर रेत 
है हर जगह बस 
प्यार - प्यार और प्यार  बेशुमार .........

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना ....सुंदर आव्हान ... आओ बटोर ले वो सुंदर पल

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  2. बहुत खूब कहा
    हर जगह प्यार ही प्यार बिखरा है ,आओ मिलकर सब समेत लें|

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  3. चलिये प्यारे-प्यारे लम्हों को सहेजते हैं ,
    आभार !!!

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