मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

.........शब्द है छोटा .....

अरे ........क्या ..........
ये है, तुम्हारी .......
...........भावना .......
शब्द ?......हां......
सच ....
शब्द ही तो है  .....
....बहुत छोटा ...
पर..... कामना बड़ी ....
शायद .....तुम्हे .....
छोटापन ....ही....
 है भाता ...
शब्द को तो करते ही रहे
याद ....पर .......
भूल गए  ......
क्या ...
इसके अहसासात !
हां ,मानती हू ....
गल्ती ...
मेरी ही थी 
तुम्हारे लिए तो.........फूल...
हां बनना तो चाहा 
फूल ही 
पर ......
तुम्हे तो भाता........
काटों का ही ........
साथ ..........................

12 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों की ऐसी लड़ी बनाइ आपने.....बहुत अच्छा लगा...।

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  2. बहुत खूबसूरत अहसासो को सजोया है आपने

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  3. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद

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  4. शब्द छोटा लेकिन शब्द का मर्म बहुत बड़ा होता है ...आपकी कविता में यह बात पूरी तरह से झलकती है ...आपका शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने के लिए

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  5. छोटे शब्दों की कड़ी जुड़ के कविता बन गयी...

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  6. किसी को काटों का साथ अच्छा लगे तो उसमें पुष्प का क्या कसूर।

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  7. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. खूबसूरती से लिखा है ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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