हो सके ख़्वाब बन दिख ही' जाया करो ।
साथ तुम भी कभी मुस्कराया करो ।।
गुनगुनाती रही रात भर बन गज़ल।
साथ तुम भी कभी गुनगुनाया करो।।
मुस्कराती रही बेबसी रात भर ।
हो सके सच कभी भी बताया करो ।।
साथ मेरे चलो शबनमी रात में ।
मैं बनूँ चाँदनी तुम सजाया करो ।।
साथ बेरहम हो कर भुलाना नहीं ।
भाव जो मन बसे ना छुपाया करो ।।
चल चलें साथ भी अब रुलाने लगा ।
दो कदम साथ 'निवी' निभाया करो ।।
बेसबब चल दिये तुम इस जहान से ।
निभ सके तो 'निवी' तुम निभाया करो ।।
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
क्या बात है प्रिय निवेदिता जी।बहुत ही प्रेमिल और मोहक भाव पिरोये है रचना में।हार्दिक बधाई 🙏
जवाब देंहटाएंस्नेहसिक्त आभार रेणु जी
हटाएंबहुत खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंहार्दिक आभार
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
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