छाया इसकी कम घनी, कोमलता है पास।
प्राणदायिनी वायु दे, इस में प्रभु का वास।।
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साँस अटकती जब सखी, करे दर्द जब पेट।
छाल छाँव और अर्क सब, बन जाते हैं खास।।
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विष प्रभाव को कम करे, रस का असर विशेष।
चलती शीतल जब हवा, आती सबको रास।।
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रंग त्वचा का निखरता, झुर्री करता साफ़।
वायु प्रदूषण का सखे , पीपल करता ह्वास।।
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पत्ते इसके कम विरल, आते विहग अनेक।
करना ऐसा यत्न है, बना रहे उच्छ्वास॥
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ब्रम्हा विष्णु महेश प्रभु, करते इसमें वास।
सज्जा करें निवास की, समृद्ध हो आवास।।
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पूजन अर्चन में सजे, घर का बंदनवार।
परमधाम जो जा चुके, उनका तरु ये ख़ास।।
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बोधि वृक्ष कहते इसे, पूजन अलग विधान।
दूध धूप दीपक जले, मंत्र का हो अभ्यास।।
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दिवस अमावस सोम हो, करते विधी विधान।
परिक्रमा होती फलित, भरता घर उल्लास।।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
बहुत ही सुन्दर गीतिका
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
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