शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

लघुकथा :उलझे तार

लघुकथा :उलझे तार

मैसेज की आवाज़ पर फोन उठा लिया उसने । देखा तो खुद को तारणहार बतानेवाली का मैसेज चमक रहा था ,"देखिये ये चित्र खास आप के लिये है ,अभी बनवाया है आपको ही दर्शाता हुआ ।"

वो इस तरह के मिथ्यारोपण से त्रस्त हो गयी थी ,तब भी हँस पड़ी ,"आपने बनवाया ... यह तो कई दिनों से बहुत सारे ग्रुप्स में घूम रहा है । कोई न शायद आप पहले दिखाना भूल गयी होंगी । "

"जानती हैं सबके दिल - दिमाग में आपको तथाकथित रूप से जाले लगे ही दिखते हैं परन्तु आप उस को साफ कर कैसे पायेंगी । अपने जिस दिमाग को आप वैक्यूम क्लीनर समझ रही हैं ,उसके तारों को अहंकार ने उलझा रखा है । अहंकार के उलझे तारों को सुलझाने के लिये इसका रुख आपको खुद अपनी तरफ भी मोड़ना होगा न । विचित्र लग रहा है समस्या और समाधान दोनों को इस तरह उलझा लिया है कि अब ऊपरवाला ही कुछ करे तो करे ... ॐ शांति शांति ...  "मैसेज भेज कर उसने फोन स्विच - ऑफ कर दिया ।

उलझे तारों को सुलझाना कह लो या दिल - दिमाग के तथाकथित जालों की सफाई ऊपरवाले से बड़ा कलाकार कोई नहीं है ।
           ..... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

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