मुझे रहा नहीं प्रिय कभी नाम जो ये राम हैं
जानकी को हर कदम छला वो यही राम हैं
तब भी सोचता ये मन हो कर मगन
जन्म से मरण तक साथ में राम हैं
जब निगाह मिल गयी हाथ यूँ जुड़ गये
लब हिले तो नाम खिला वो यही राम हैं
काम जो बिगड़ गया मन उलझ भी गया
मन को ये कह दिया हारे के राम हैं
वन की वीथियाँ थीं दुष्कर रीतियाँ थीं
चल पड़ी सिया बेझिझक कि साथ में राम हैं
भरत भी टूट गये राजसी ठाठ छूट गये
ज्येष्ठ की पादुका लिये हृदय में नाम राम हैं
लखन सदा साथ थे भृकुटी में रोष भी भरे
दुर्वासा के सम्मुख नत नयन किये खड़े यही राम हैं
पिता थे महारथी वचन के थे धनी
प्राण छूटते समय लिया नाम वो यही राम हैं
अहल्या शापित हुई समाज से प्रताड़ित हुई
वर्जनायें तोड़ कर समाज मे लाने वाले यही राम हैं
यमुना एक नदी है बहती रही कई सदी है
सबको तारने वाले जले इसमें यही राम हैं
भाव से भरी थी जूठे बेर लिये खड़ी थी
खट्टे पलों में रस भरे भाव वो यही राम हैं
तारा को तार / मान दिया मन्दोदरी का सम्मान किया
जानकी की अग्नि परीक्षा ली वो यही राम हैं
दानव कुछ कर न सके अग्नि भी छू न सकी
कण कण गले जल में समाधि ली वो यही राम हैं
चली कांधों पर "निवी" लम्हों का साथ छूट गया
तन भी मिट्टी हुआ साथ नाम सत्य के राम हैं
.... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
जानकी को हर कदम छला वो यही राम हैं
तब भी सोचता ये मन हो कर मगन
जन्म से मरण तक साथ में राम हैं
जब निगाह मिल गयी हाथ यूँ जुड़ गये
लब हिले तो नाम खिला वो यही राम हैं
काम जो बिगड़ गया मन उलझ भी गया
मन को ये कह दिया हारे के राम हैं
वन की वीथियाँ थीं दुष्कर रीतियाँ थीं
चल पड़ी सिया बेझिझक कि साथ में राम हैं
भरत भी टूट गये राजसी ठाठ छूट गये
ज्येष्ठ की पादुका लिये हृदय में नाम राम हैं
लखन सदा साथ थे भृकुटी में रोष भी भरे
दुर्वासा के सम्मुख नत नयन किये खड़े यही राम हैं
पिता थे महारथी वचन के थे धनी
प्राण छूटते समय लिया नाम वो यही राम हैं
अहल्या शापित हुई समाज से प्रताड़ित हुई
वर्जनायें तोड़ कर समाज मे लाने वाले यही राम हैं
यमुना एक नदी है बहती रही कई सदी है
सबको तारने वाले जले इसमें यही राम हैं
भाव से भरी थी जूठे बेर लिये खड़ी थी
खट्टे पलों में रस भरे भाव वो यही राम हैं
तारा को तार / मान दिया मन्दोदरी का सम्मान किया
जानकी की अग्नि परीक्षा ली वो यही राम हैं
दानव कुछ कर न सके अग्नि भी छू न सकी
कण कण गले जल में समाधि ली वो यही राम हैं
चली कांधों पर "निवी" लम्हों का साथ छूट गया
तन भी मिट्टी हुआ साथ नाम सत्य के राम हैं
.... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-10-2019) को "आम भी खास होता है" (चर्चा अंक-3497) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिल्कुल सच कहा ..
जवाब देंहटाएंशाश्वत।
जवाब देंहटाएंसुंदर।