रविवार, 13 मार्च 2011

शाख ने कहा ............

एक टूटी हुई शाख ने ,
इक रोज़ कहा वृक्ष से ...
करना ही था अलग ,
क्यों जोड़ा मुझे 
वृक्ष की पहचान से ?
हटाने से पहले ,
दे दी होती मुझ में भी 
जड़ की सहायक सी श्वांस !
अलग होने का नहीं गम ,
बदले मैंने भी कई रंग 
कभी पूजित हुआ ,
कभी तिरस्कृत 
और कभी बन गया,
अंधे की लाठी समान !
कभी निर्बल का सहारा,
कभी अत्याचारी का बल 
देखे मैंने भी कई रंग !
अगर देते रहते मुझे ,
यों ही जीवन - बल 
मै भी छू लेता ,
आसमां की बुलंदी
लहराता - इठलाता 
भोग पाता , जी लेता 
अपना ये प्यारा सा जीवन !!!
                      निवेदिता

7 टिप्‍पणियां:

  1. बूँद की कहानी याद आ गयी। उसको भी बादल छोड़ना पड़ता है।

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  2. बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई |इसी तरह लिखती रहिये |
    आशा

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  3. बहुत ही प्यारी कविता !इतनी खूबसूरत एवं कोमल सी रचना के लिये बहुत-बहुत बधाई एवं होली की ढेर सारी शुभकामनायें !

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  4. आदरणीय आशा दी ,यशवन्त ,प्रवीण जी ,उडन तश्तरी जी ,सन्जय -आप सब के समर्थन के लिये आभारी हूं !!!

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