गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

शीर्षक : मंज़िल मिल जाएगी


शीर्षक : मंज़िल मिल जाएगी

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कैसे कह दूँ कि मैं परेशान नहीं हूँ ,
बिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ ।

उखड़ी सी साँसों से साँस भरती हैं ,
हाथों को नज़रों से थाम कहती हैं ।

जानेजां कर तू परस्तिश हौसलों की ,
इन्हीं राहों में हम फिर मिल चलेंगे ।

ज़िंदगी जिंदादिल वापस मुस्करायेगी ,
अपने होने का यूँ एहसास कराएगी ।

लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही ,
कह रही 'निवी' मंज़िल मिल जाएगी ।।
      .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  2. अवश्य,'लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही' मंज़िल मिलेगी ज़रूर.

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  3. कैसे कह दूँ कि मैं परेशान नहीं हूँ ,
    बिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ ।.. वाह !लाजवाब सृजन

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