मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

लघुकथा : उम्र

लघुकथा : उम्र

कब से बैठी शून्य में ही टकटकी लगाए बैठी थीं वो । हर पल खिलती खिलखिलाती बातों  की फुहार सी हर कहीं  बरसने वाली बदली धुंध बनती जा रही हो जैसे ।

नन्हा गोलू गेंद खोजता हुआ उधर आ गया और उनको देख बोल पड़ा ,"दादी चलो न रेस लगाते हैं ,वैसे भी मेरी गेंद मिल ही नहीं रही ।"

"नहीं बेटा ,अब मैं रेस नहीं लगा पाऊँगी । दर्द बहुत हो रहा है ।"

"कहाँ दर्द है दादी ? चलो डॉक्टर के पास चलते हैं ।"

"नहीं गोलू ,अब मैं ठीक नहीं हो पाऊँगी । मेरे डॉक्टर को भगवान ने अपने पास बुला लिया है न । अब मैं बूढ़ी हो गयी हूँ ",कहती हुई वह एक हाथ घुटनों पर और दूसरा पीठ पर रख कर उठने का प्रयास करने लगीं ।

"दादी अभी जब हम घर से आये तब तक आप मुझसे रेस लगाती आयी हैं ,अचानक क्या हो गया ?  अरे हाँ आप फ़ोन पर किससे बात कर रही थीं ।"

"बेटा वो मेरे छोटे भाई का फ़ोन था ,वो मेरी माँ ....   " छलक आयी पलकों की नमी को सुखाती बोल पड़ी ,"बेटा  अब तो मैं बड़ी हो गयी हूँ ।"
                               ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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