शीर्षक : मंज़िल मिल जाएगी
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कैसे कह दूँ कि मैं परेशान नहीं हूँ ,
बिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ ।
उखड़ी सी साँसों से साँस भरती हैं ,
हाथों को नज़रों से थाम कहती हैं ।
जानेजां कर तू परस्तिश हौसलों की ,
इन्हीं राहों में हम फिर मिल चलेंगे ।
ज़िंदगी जिंदादिल वापस मुस्करायेगी ,
अपने होने का यूँ एहसास कराएगी ।
लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही ,
कह रही 'निवी' मंज़िल मिल जाएगी ।।
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।
"मीना भारद्वाज"
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअवश्य,'लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही' मंज़िल मिलेगी ज़रूर.
जवाब देंहटाएंकैसे कह दूँ कि मैं परेशान नहीं हूँ ,
जवाब देंहटाएंबिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ ।.. वाह !लाजवाब सृजन