शनिवार, 29 जून 2019

गीत : उम्र झूठ की तुमने बताई न होती

गीत

उम्र झूठ की तुमने बताई न होती ।
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।

सूरज भी झुलसा होगा तन्हाई में
अंधेरा सोया रहा मन की गहराई में ।
चाँद ने चाँदनी बरसाई न होती
वफ़ा की भी यूँ कभी रुसवाई न होती ।।

नयन बोलते रह गए मन की अंगनाई में
तारे भी हँस पड़े अम्बर की अमराई में ।
शब्दों ने यूँ वल्गा लहराई न होती
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।

तन ऐसे चल रहा लम्हों की भरपाई में
मन क्यों डूब रहा उम्र की गहराई में ।
रस्मों में उलझन समायी न होती
वफ़ा की यूँ कभी रुसवाई न होती ।।
                                       ... निवेदिता

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