शनिवार, 22 जून 2019

गीत : उम्र गुजरती है सपनों की तुरपाई में

गीत

उम्र गुजरती है सपनो की तुरपाई में ।
हर रेशा जोड़ा रिश्तों की सरमाई में ।।


तन्हा तन्हा मन बेबस सा छलकता रहा
जीवन नवरस से अनमना सा बरसता रहा ।
बिसरी बातों से जीवन कलश भी दरक रहा
साँसे भरता रहा रिश्तों की भरपाई में ।।
उम्र गुजरती है सपनों की तुरपाई में ...


बचपन किलक किलक कर कदम बहकाता रहा
बुढापा यौवन की भी याद दिलाता रहा ।
पगला मन यादों की धार बरसाता रहा
दिल बेबस सा डरता रहा जग हँसाई में ।।
उम्र गुजरती है सपनों की तुरपाई में ...


नव कलिका भी थिरक थिरक कर सुरभित हुई
डोली मैके की गलियाँ रोता छोड़ चली ।
लोभी दुल्हन को तड़पा कर जलाता रहा
मन यूँ भी कलप रहा खुदा की खुदाई में ।।
उम्र गुजरती है सपनों की तुरपाई में ... निवेदिता


2 टिप्‍पणियां:

  1. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २४५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...

    रहा गर्दिशों में हरदम: २४५० वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-06-2019) को "-- कैसी प्रगति कैसा विकास" (चर्चा अंक- 3376) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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