मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

लघुकथा : अस्तित्व की पहचान

लघुकथा : अस्तित्व की पहचान

अन्विता अर्चिका को देखते ही स्तब्ध रह गयी ,"अरे ... ये तुझे क्या हुआ ... कैसी शकल बना रखी है ..."

अन्विता जैसे अपनी सखी के मन में विराजमान शून्य तक पहुँच गयी हो ,उसको साहस देते हाथों से थाम लिया ,"जानती है अर्चिका असफलता या अस्तित्व को नकारे जाने से निराश होकर जीवन से हार मान लेने से किसी समस्या का समाधान नहीं मिल सकता । तुम्हारी ये स्थिति किस वजह से है ये मैं नहीं पूछूँगी सिर्फ इतना ही कहूँगी कि तुम्हारा होना किसी की स्वीकृति का मोहताज नहीं है । हो सकता है कि तुमको लग रहा होगा कि इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हारा अस्तित्व ही क्या है । सच्चाई तो ये है कि हर व्यक्ति की कुछ विशिष्ट पहचान न होते है भी विशिष्ट अस्तित्व होता है । तुम पूरी दुनिया तो नहीं बन सकती पर ये भी सच है कि तुम्हारे बिना ये दुनिया भी अधूरी रहेगी । लहरों में उफान सिर्फ एक बूँद पानी से नहीं आ सकता पर उस जैसी कई नन्ही बूँदों का सम्मिलित आवेग ही तो तूफानी हो जाता है । अपनेआप को और अपनी महत्ता सबसे पहले खुद के लिये पहचानो ,फिर देखो तुममे कमी निकालनेवाले स्वर ही तुम्हारी वंदना करते हुए अनुगमन करेंगे ।"

खिड़की से झाँकते इंद्रधनुषी रंगों की चमक जैसे अर्चिका की आँखों में सज गयी !  ... निवेदिता

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