मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

लघुकथा : दूसरा अवसर

 लघुकथा : दूसरा अवसर

अन्विता ,"माँ ये सब समान फेंक दूँ क्या ... सारा खराब और टूटा फूटा है ... "

माँ ,"नहीं बेटा सब ठीक हो जायेगा ... ये इस चप्पल में दूसरा बंध डलवा देंगे ,तब घर मे पहनने के काम आ जायेगी । पैन का हैंडल ही तो टूटा है ,कपड़े से पकड़ कर  काम आएगा । अरे ये साड़ी तो मेरी माँ ने दी थी फट गई तो क्या हुआ ,उससे कुछ और बना लेंगे । अन्विता बेटा गृहस्थी सब समझ कर चलानी पड़ती है ,ऐसे ही कुछ भी फेंका नहीं जाता ।"

अन्विता ,"माँ यही तो मैं भी कहना चाहती हूँ ... भइया का शरीर शांत हुआ और भाभी को जीते जी ही मरना पड़ रहा है । जब इन निर्जीव वस्तुओं को फिर से उपयोगी बना सकती हैं आप ,तब जीती जागती भाभी को जीवन जीने का दूसरा अवसर क्यों नहीं मिल रहा ? माँ आप भाभी की शिक्षा पूरी करवाइए और उनकी पसंद का रंग उनके जीवन में फिर से भर दीजिये ।"
                                ..... निवेदिता

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सही बात
    सुन्दर संदेशपरक कथा..

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  3. बही सुन्दर संदेश देती सारगर्भित लघुकथा...

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/04/2019 की बुलेटिन, " २ अप्रैल को राकेश शर्मा ने छुआ था अंतरिक्ष - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. बेहतरीन सोच ही समाज की कमियां दूर करती है ,बहुत ही सुंदर ,नमस्कार

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