मन बावरा
बन बन भटका
मन भर का ...
रूखे बेरुखी
मन ही मन भावे
ये मेरा मन ...
प्रीत है सच्ची
फिर भी मन रूठे
जग न छूटे
नाराज़ नहीं
जीवन जी रही हूँ
नासमझ हूँ ... निवेदिता
बन बन भटका
मन भर का ...
रूखे बेरुखी
मन ही मन भावे
ये मेरा मन ...
प्रीत है सच्ची
फिर भी मन रूठे
जग न छूटे
नाराज़ नहीं
जीवन जी रही हूँ
नासमझ हूँ ... निवेदिता
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 13/04/2019 की बुलेटिन, " १०० वीं बरसी पर जलियाँवाला बाग़ कांड के शहीदों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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