मन बावरा
बन बन भटका
मन भर का ...
रूखे बेरुखी
मन ही मन भावे
ये मेरा मन ...
प्रीत है सच्ची
फिर भी मन रूठे
जग न छूटे
नाराज़ नहीं
जीवन जी रही हूँ
नासमझ हूँ ... निवेदिता
बन बन भटका
मन भर का ...
रूखे बेरुखी
मन ही मन भावे
ये मेरा मन ...
प्रीत है सच्ची
फिर भी मन रूठे
जग न छूटे
नाराज़ नहीं
जीवन जी रही हूँ
नासमझ हूँ ... निवेदिता
सुन्दर
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