शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

यात्रा ...

 जीवन, मानव का हो अथवा प्रकृति का या फिर वनस्पति का, एक अनन्त यात्रा ही होती है। एक बिन्दु से प्रारम्भ हो कर मिट्टी में अथवा जल में समाहित हो कर बारम्बार प्रस्फुटित होता ही रहता है जीवन। पंचतत्वों से बना यह शरीर अपने एक जीवन की पूर्णता के बाद पुनः उन्हीं पंचतत्वों को उनका अंश दे देता है और फिर उन्हीं से वापस ले कर, अपना दूसरा, तीसरा जीवन चक्र पूरा करता है। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। यह यात्रा स्थूल शरीर की अनवरत चलने वाली यात्रा है।


जन्म एवं पुनर्जन्म की यात्रा को भी कुछ लोग नहीं मानते हैं, तो कुछ मुक्ति अथवा मोक्ष की बात करते हैं। यहाँ एक बिन्दु विचारणीय है कि यदि जन्म एवं पुनर्जन्म को नहीं मानें, तब जन्म अथवा जीवन की अवधारणा कैसे होगी ... किसी एकदम ही अनजान को देख कर मन अनायास ही उसके प्रति नेह से भर बंध जाता है तो किसी को देख कर वितृष्णा जग जाती है। इस व्यवहार का कारण मुझको तो उससे पूर्वजन्म के अनुभव / सम्बंध ही लगते हैं। तथाकथित मोक्ष भी उस व्यक्ति को बन्धनमुक्त नहीं कर सकता क्योंकि वो बहुत से लोगों की अच्छी और बुरी दोनों ही आदतों के रूप में यादों में जीवित रह कर यात्रा करता ही रहता है।

व्यक्ति की एक यात्रा आध्यात्मिक भी होती है। पूर्वजन्मों के संचित कर्म के अनुसार ही, जन्म के समय परिवेश मिलता है। वर्तमान जीवन के परिवेश एवं पूर्वजन्मों के संस्कार ही हमारे कर्मों को संचियमान कर्मो में परिवर्तित करते हुए, प्रारब्ध निश्चित करते हैं। इस यात्रा में भटकाव भी बहुत है, उलझाते हुए प्रश्न भी हैं, परन्तु परमसत्ता के प्रति समर्पण ही गंतव्य तक पहुँचा देता है। सम्भवतः मेरी भी आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ हो गयी है ... भोलेनाथ के प्रति समर्पण भाव मुझको प्रत्येक व्यक्ति एवं परिस्थिति में शिव का ही आभास देता है।

एक और भी यात्रा है जिसके ज़िक्र के बिना इस विषय पर बात पूर्ण नहीं हो पायेगी। यह यात्रा ऐसी यात्रा है जिसमें कोई भी न तो अपनी तैयारी कर पाता है और न ही देख पाता है ... यह यात्रा है अन्तिम यात्रा ! साँसों के ताने बाने की माला के टूटते ही पंचतत्वों की गुनिया बिखर जाती है, परन्तु उसको उन मूल तत्वों तक वापस पहुँचाने के लिए यह यात्रा अनिवार्य हो जाती है। जाने वाला व्यक्ति किस विचारधारा का था यह सोचे बिना अपनी सुविधानुसार विविध कर्मकाण्डों का पालन करते हुए उसकी इस अन्तिम यात्रा को भी सम्पन्न करवाते हैं।

अन्त में यही कहना चाहूँगी कि यात्रा कोई सी भी हो, कैसी भी हो सदैव समभाव रखना और रहना चाहिए ... सबसे आवश्यक बात यह है कि यात्रा के लिए अपने कर्मों की गठरी का आकलन करते हुए, उसको संतुलन की धूप और हवा दिखाते रहना चाहिए। मोक्ष मिले अथवा न मिले पर किसी की यादों के गलियारे में कसैलेपन के आभास रूप बसेरा नहीं करना चाहिए ... इसके लिए आवश्यक है कि अंतरमन की यात्रा करते रहना चाहिए।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

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