शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

यादों की रम्बल स्ट्रिप

 आज बसन्त पंचमी है ... लग रहा था कि शायद इस बार नहीं हो परन्तु बावरा मन हर साल की तरह इस बार भी यादों की टीस की चुभन अनुभव कर रहा है । सरस्वती पूजा की ,रम्बल स्ट्रिप जैसी एक रील सी चल रही है ।


स्कूल के दिनों में बसन्त पंचमी विशिष्ट होने का आभास देती थी क्योंकि कार्यक्रम में सरस्वती के रूप में ,वीणा के साथ मुझे ही बैठाया जाता था और मैं ही सबको प्रसाद देती थी । बाद के वर्षों में भी पूजन का सिलसिला चलता रहा । 


कालान्तर में जब बच्चों को सरस्वती पूजा के लिए भेजती थी ,तब उनको समझाना पड़ता था कि इस पूजा में ऐसी क्या विशिष्टता है जो उनको स्कूल जा कर पूजा करनी है । 


समय अपनी चाल चलता ,रंगत बदल जाता है और हम हतप्रभ से बस देखते रह जाते हैं । ऐसा ही एक वर्ष आया था जो बसन्त पंचमी के दिन ही हमारे पापा को चिरनिद्रा में सुला गया था और हम सब इंसान होने की विवशता लिए उनको ... नहीं ... उनके शरीर को जाते देखते रह गए । तब से इस दिन पर किसी भी प्रकार की पूजा करने का दिल ही नहीं करता है । 


कभी - कभी मन को मजबूत करना चाहती हूँ कि सम्भवतः पापा ने अपने महाप्रयाण के लिए बसन्त पंचमी को इसलिए ही चुना कि माँ शारदे अपने स्नेहिल अंचल की छाया में मुझ को ताउम्र रखे रहें ! #निवी

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