आज उदासी ने दी थी दस्तक
छू कर मेरी उंगलियाँबस इतना ही कहा
आओ तुमको दिखाती हूँ
अपना हर एक ठिकाना !
मेरी बेबस सी उदासी ने झाँका
उसकी उदास आँखों में
तुमको खोजने और कहीं क्यों जाऊँ
तुम तो बसी हो मेरे अंतर्मन में
सुनो ! पहले मुझको तो मुक्त करो
फिर चल दूँ साथ तुम्हारे !
उदासी ने बरसाई एक उदास मुस्कान
और देखा मुझको पलट कर
सुनो ! आओ मेरे साथ चलो
बेबसी के कुछ बोल सुनाती हूँ
आज तुमको अपने असली ठिकाने दिखाती हूँ !
तुमको अपनी ही उदासी दिखाई देती है
जानना चाहती हो क्यों !
तुमने न अपनी आँखों पर
ये जो ऐनक है चढ़ाई
इसमें सिर्फ और सिर्फ दिखाई देती है
तुमको अपनी ही उदासी और तन्हाई !
और सुनो न ऐ मेरी उदासी !
जबसे मैंने बदली है अपनी ऐनक
दूसरों की पीड़ा और उदासी ने भी
मेरे दिल को घेरा है और मैंने
उस ऊपरवाले को याद किया
अपनी छटपटाहट को भूल गयी
उदासी को बेघर करने की अहद उठाई
कहीं आम्र पल्लव में कोयल है कूकी !
#निवी
वाह , ये अहद जारी रहे ।
जवाब देंहटाएंउदासी ही उदासी को सीख दी रही ।ये भी कमाल ही है न ?
बहुत सुंदर भाव , सुन्दर सन्देश, आइए उदासी से सीख तरो ताजगी की ओर बढ़ें
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंSundar bhavon ko darshaya hai ...umeed hai ye udasi ke badal jyada der tak na mandarayein
जवाब देंहटाएंKhush rahein
Abhar!