बुधवार, 3 मार्च 2021

लघुकथा ( शैली : संवाद ) : आभासी मिलन



एक - दूसरे को झाँक कर देखने का प्रयास करते और विफल होने पर बातें करते एक जोड़ी कान ...


सुनो !


हाँ ! बोलो न ... 


सुना है कि हम दोनों एक से ही हैं ...


हाँ ! यही तो मैंने भी सुना है 


ये बताओ तुमको कैसे लगा कि हम एक जैसे ही हैं ...


ये फ़ोन न जब मेरे पास आता है तब भी वो गालों को उतना ही छूता हुआ दिखाई देता है ,जितना तुम्हारे पास जाने पर 😅😅


 हा हा हा ... कह तो सही रहे हो 


अरे ! इतनी अच्छी बातें करते - करते उदास हो कर चुप क्यों हो गए हो 🤔


हमारे गुनाहों की सजा आँखों को मिलती है न ... सुनते हम हैं पर भीगती तो ये आँखें हैं ... 


हाँ ! यह बात भी सही है ... बहरहाल ये छोड़ो एक बात बताऊँ ... 


हम्म्म्म ... 


खुशी में दुलार करने के लिये ही हमको एक साथ पकड़ते हैं ,गुस्सा तो एक को ही पकड़ कर उतारते हैं 😏 😅😅


अच्छा ये बताओ हम क्या कभी एक - दूसरे को देख या छू पाएंगे ?


बिल्कुल ... पर आभासी रूप से 😅😅


आभासी 🤔


अरे जब चश्मे की दोनों कमानी की वरमाला हमारे गले झूलेगी और जो आँखें हमारी वजह से नम होती हैं न उनके सामने लेंस आ जायेगा न , बस उसी में आभासी रूप से हम मिल लेंगे 😊  .... निवेदिता 'निवी'

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